Wednesday, 8 January 2025

एक ग़ज़ल -अपनी ग़ज़ल के साथ

 

चित्र साभार गूगल 

दस्तक न दो किवाड़ पे , खुशबू कमल के साथ 

मशरूफ़ हूँ मैं इन दिनों अपनी ग़ज़ल के साथ


अब चाँदनी का अक्स निहारुँ क्या झील में 

मौसम की जंग में हूँ मैं अपनी फसल के साथ 


कुछ दिन जियेंगे लोग गलतफहमियों के संग 

फिर आ गया है गाँव में कोई रमल के साथ 


दरिया के पानियों पे नज़ारे हसीन हैं 

कैसे परिंदे चोंच लड़ाते हैं जल के साथ 


धरती से लोकरंग मिटाने की ज़िद न कर 

जिन्दा रहें ये रंग जरुरी बदल के साथ 

कवि /शायर 

जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल 


8 comments:

  1. बेहतरीन, वाह वाह।

    ReplyDelete
  2. वाह्ह... लाज़वाब ग़ज़ल सर।
    सादर।
    -----
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १० जनवरी २०२५ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपका हृदय से आभार. सादर अभिवादन

      Delete
  3. मौसम की जंग में हूं अपनी फसल के साथ .. वाह

    ReplyDelete
  4. बहुत सुन्दर

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणी हमारा मार्गदर्शन करेगी। टिप्पणी के लिए धन्यवाद |

एक देशगान -मोदी है रुद्रावतार

  भारत माता एक देशगान  माननीय प्रधानमंत्री जी संकट में था  सिंदूर  सनातन, महाकाल. हिमशिखर  पिघलने लगे  सिंधु में है उबाल. तन गयी  भृकुटि मोद...