चित्र साभार गूगल |
एक गीत -कोई तो वंशी को स्वर दे
मन के सूने
वृंदावन को
कोई तो वंशी का स्वर दे.
यह पठार था
फूलों वाला
मौसम फिर फूलों से भर दे.
सुविधाओं के
कोलाहल में
कविताओं के अर्थ खो गए,
साजिन्दे
सारंगी लेकर
रंगमहल के बीच सो गए,
ठुमरी का
आलाप सुनाकर
कोई जादू -टोना कर दे.
अभिशापित
किष्किन्धाओं को
कोई साथी मिले राम सा,
शबरी जैसा
प्रेम जहाँ हो
वह वन प्रांत्रर पुण्य धाम सा,
धूल भरे
मौसम में उड़ना
कोई तो जटायु सा पर दे.
कहाँ खो गए
कमल पुष्प वो
झीलों से बतियाने वाले,
बिछिया पहने
नज़र झुकाकर
मंद मंद मुस्काने वाले,
आँगन -आँगन
रंग खिलेंगे
कोई पाँव महावर धर दे.
अबके सावन
गीत लिखूँगा
जूड़े -जूड़े बेला महके,
चातक प्यास
बुझाए अपनी
डाल -डाल पर पंछी चहके,
कोई दरपन में
अपने ही
अधरों पर अधरों को धर दे.
कवि जयकृष्ण राय तुषार
चित्र साभार गूगल |
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (29-5-22) को क्या ईश्वर है?(चर्चा अंक-4445) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
अत्यंत सुंदर भावपूर्ण कृति । सादर अभिवादन 🙏
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका. नमस्ते
Deleteबेहद सुंदर सृजन
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका. नमस्ते
Deleteभावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने.....
ReplyDeleteहार्दिक आभार भाई
Deleteसुंदर सृजन
ReplyDeleteहार्दिक आभार भाई
Delete'कोई दरपन में
ReplyDeleteअपने ही
अधरों पर अधरों को धर दे'
- वाह, अद्भुत कविवर! अतुकांत में भी रिदम भरती सुन्दर रचना
गीत /नवगीत है प्रभु छन्दन्मुक्त या अतुकांत नहीं. हार्दिक आभार आपका
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