चित्र सभार गूगल |
एक प्रेमगीत-डाकिए पढ़ने लगे हैँ
(मै दक्षिण भारत देखा नहीं हुँ बस मन की कल्पना है)
सादर
मदुरई,
मीनाक्षी के
खूबसूरत हैं नज़ारे ।
आबनूसी
बंधे जूड़े में
सुगन्धित फूल सारे ।
हाथ में
दर्पण उठाए
नींद जागी सज रही है,
एक घंटी-
पंखुरी सी
उँगलियों में बज रही है,
कर नहीं
सकता सहज
अनुवाद कितने बिम्ब सारे ।
रेत के प्यासे
अधर भी
छू रहीं लहरें सयानी,
हंस के जोड़े
मनोहर,वृद्ध
योगी और ज्ञानी,
दूर तक
जलयान सुंदर
मोर मुख वाले शिकारे।
हर नगर का
शिल्प अपना
सभ्यताओं की कहानी,
प्रेम की हर
लोकगाथा
पढो नूतन या पुरानी,
डाकिये
पढ़ने लगे हैं
प्रेम के अब पत्र सारे ।
पर्ण केले के
हरे हैं नयन
खंजन,माथ चंदन ,
द्वार आये
अतिथियों है
कर रही मुस्कान वंदन,
रात्रि में
मौसम सुहाना
चाँदनी के संग सितारे ।
कवि -जयकृष्ण राय तुषार
चित्र साभार गूगल |
वाह! सुंदर!!!
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका।सादर अभिवादन
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