चित्र सभार गूगल |
ऐसी महफ़िल में खुदा उनसे मुलाक़ात न हो
सिर्फ़ नज़रें ही मिलें और कोई बात न हो
हाथ में फिर से कोई फूल लिए लौट गया
और ऐसा भी नहीं था की उसे याद न हो
ज़िंदगी पहले मोहब्बत की कहानी लिखना
वक्त के साथ ये मंज़र ये ख़यालात न हो
इस तरह पेड़ हरे कटते रहे तो शायद
अबकी सावन के महीने में ये बरसात न हो
मुझसे वो पूछता है मेरी कहानी अक्सर
और खुद चाहता है उससे सवालत न हो
फिर नहीं मिलने के वादे को निभाते हैँ चलो
फैसला करते समय फ़िर वही जज्बात न हो
बिक रहे फूल,हवा,पानी ये शायर ये कलम
चांद बाज़ार में बिक जाए ये हालात न हो
कवि/शायर जयकृष्ण राय तुषार
चित्र सभार गूगल |
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर सोमवार 02 मई 2022 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
हार्दिक आभार आपका।सादर अभिवादन
Deleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार 02 मई 2022 को 'इन्हीं साँसों के बल कल जीतने की लड़ाई जारी है' (चर्चा अंक 4418) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
हार्दिक आभार आपका
Deleteसुंदर ग़ज़ल
ReplyDeleteहार्दिक आभार भाई
Deleteबहुत सुन्दर एवं सार्थक पंक्तियाँ!!
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका।सादर अभिवादन
Deleteबेहद सुंदर गज़ल । हर बंध बढ़िया है।
ReplyDeleteहादर
सादर
Deleteहार्दिक आभार श्वेता जी
Deleteहार्दिक आभार।ग़ज़ल में बंध नहीं शेर होता है।बंध गीत में होता है।सादर
Deleteजी सर आभार।
Deleteबहुत ही उम्दा
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका भाई
Deleteउम्दा ग़ज़ल
ReplyDeleteसादर अभिवादन।हार्दिक आभार आपका
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