चित्र साभार गूगल |
हिन्दी ग़ज़ल को भी तो कोई मीर चाहिए
अपनी ज़मीन पर नई तामीर चाहिए
शेर-ओ- सुखन को इक नई तस्वीर चाहिए
महफ़िल में अब भी सुनता हूं दुष्यन्त की ग़ज़ल
हिन्दी ग़ज़ल को अब भी कोई मीर चाहिए
गैंता, कुदाल मेरे,जिसे बाँसुरी लगें
मुझको बदलते दौर की वो हीर चाहिए
पंडित हों, जिसमें, डोंगरी, कश्मीरियत भी हो
मुझको वही चिनाब वो कश्मीर चाहिए
भाषा, कहन नई, नया सौंदर्य बोध हो
हिन्दी ग़ज़ल की सीता को रघुवीर चाहिए
पिंजरे को तोड़कर के परिंदे उड़ान भर
बस हौसले को थोड़ी सी तक़दीर चाहिए
अपने ख़याल ख़्वाब बुलंदी के वास्ते
ग़ालिब, न, दाग, जौक़ नहीं मीर चाहिए
कवि जयकृष्ण राय तुषार
चित्र साभार गूगल |
Nice Sir .... Very Good Content . Thanks For Share It .
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