माननीय योगी जी माँ जी से आशीर्वाद लेते हुए |
एक गीत -माँ तुम गंगाजल होती हो
मेरी ही यादों में खोयी
अक्सर तुम पागल होती हो
मां तुम गंगा जल होती हो!
मां तुम गंगा जल होती हो!
जीवन भर दुःख के पहाड़ पर
तुम पीती आंसू के सागर
फिर भी महकाती फूलों सा
मन का सूना संवत्सर
जब-जब हम लय गति से भटकें
तब-तब तुम मादल होती हो।
व्रत, उत्सव, मेले की गणना
कभी न तुम भूला करती हो
सम्बन्धों की डोर पकड कर
आजीवन झूला करती हो
तुम कार्तिक की धुली चाँदनी से
ज्यादा निर्मल होती हो।
पल-पल जगती सी आँखों में
मेरी खातिर स्वप्न सजाती
अपनी उमर हमें देने को
मंदिर में घंटियां बजाती
जब-जब ये आँखें धुंधलाती
तब-तब तुम काजल होती हो।
हम तो नहीं भगीरथ जैसे
कैसे सिर से कर्ज उतारें
तुम तो खुद ही गंगाजल हो
तुमको हम किस जल से तारें।
तुझ पर फूल चढ़ायें कैसे
तुम तो स्वयं कमल होती हो।
कवि -जयकृष्ण राय तुषार
चित्र सभार गूगल |
चित्र सभार गूगल |
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 5-5-22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4421 में दिया जाएगा | चर्चा मंच पर आपकी उपस्थिति चर्चाकारों का हौसला बढ़ाएगी
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबाग
हार्दिक आभार आपका
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 05 मई 2022 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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हार्दिक आभार आपका।सुप्रभात
Deleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका।सादर अभिवादन
Deleteमाँ की महिमा को बहुत ही सुंदर शब्दों में व्यक्त किया है।
ReplyDeleteलाज़बाब
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका।सादर अभिवादन।
Deleteबहुत भावपूर्ण सुंदर रचना
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका।सादर अभिवादन।
Deleteसब माँ का ही आशीर्वाद होता है
ReplyDeleteबहुत अच्छी सार्थक पोस्ट
हार्दिक आभार आपका।सादर अभिवादन आपका।
Deleteबहुत सुंदर पोस्ट... माँ सचमुच गंगा सी निर्मल होती है...
ReplyDeleteवाह , मां के सम्मान में लिखी अति उत्तम रचना ।
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय।