चित्र साभार गूगल |
एक ग़ज़ल -
आपको लगता है ये मुज़रा बहुत आसान है
आँधियों से अब दरख़्तों को बचाना चाहिए
हमको मीठे फल परिंदो को ठिकाना चाहिए
आपकी दिल्ली में बांग्लादेशी,रोहिंग्या बसे
आप समझें मुल्क को कैसे बचाना चाहिए
बादलों में चाँदनी छिपती रही हर चौथ में
चाँद की साजिश से अब पर्दा उठाना चाहिए
आपके गमले में पौधे बोनसाई हैँ सभी
और घटाएं जलभरी मौसम सुहाना चाहिए
धूप को उसने खबर में धुंध का मौसम लिखा
आँख में अख़बार को काजल लगाना चाहिए
अब सियासत भी स्वयंवर घूमती मछली वही
जीतना है अगर अर्जुन सा निशाना चाहिए
नींद में अब चाँद ,परियों की कहानी मत सुना
अब तुम्हें कुछ भूख का किस्सा सुनाना चाहिए
आपको लगता है ये मुज़रा बहुत आसान है
एक दिन घुँघरू में इस महफ़िल में आना चाहिए
कवि /शायर जयकृष्ण राय तुषार
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