Saturday 14 May 2022

एक ग़ज़ल -हिन्दोस्ताँ का रंग

चित्र साभार गूगल 


एक ग़ज़ल  -भींगे  वदन  के साथ


भींगे वदन के साथ मुसाफ़िर सफ़र में था

उसकी नज़र झुकी थी वो सबकी नज़र में था


बारिश, हवाएं, बिजलियां सब छेड़ते रहे

खुशबू लिए ये फूल  सभी की ख़बर में था


ख़त भी लिखा तो मेरा ठिकाना गलत लिखा

वरना मैं डाकिए के मुताबिक शहर में था


दौलत तमाम, बेटे थे शोहरत भी कम न थी

तनहा तमाम उम्र वो बूढ़ा ही घर में था


साया, दातून, घोंसला सब लेके गिर गया

बस्ती बहुत उदास थी कुछ तो शज़र में था


संतूर का वो शिव था उसे अलविदा कहो

हिन्दोस्ताँ का रंग उसी के नज़र में था


चेहरे को सच बता दिया लेकिन तमाम रात

आईना हर दीवार पे दहशत में, डर में था


बुझता हुआ चराग वहीं देखता रहा

दुनिया के साथ मैं भी हवा के असर में था


जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल

स्मृति शेष पंडित शिव कुमार sharma

5 comments:

  1. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज रविवार (15-5-22) को "प्यारे गौतम बुद्ध"'(चर्चा अंक-4431) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    ------------
    कामिनी सिन्हा

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    1. हार्दिक आभार आपका. सादर prnam

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  2. पंडित शिव कुमार शर्मा जी को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि।
    बहुत सुंदर सराहनीय गजल ।

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    1. हार्दिक आभार आपका. सादर प्रणाम

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  3. वाह! बहुत सुन्दर ग़ज़ल. दाद स्वीकारें।

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