Sunday 31 July 2022

एक ग़ज़ल -राम को जब कोई हैवान भुला देता है


प्रभु श्रीराम 


एक ग़ज़ल --
कोई मौसम कहाँ सूरज को बुझा देता  है

शांत मौसम में हरा पेड़ गिरा देता है
ये वही जाने किसे, कौन सज़ा देता है

सब उजाले में शहँशाह समझते खुद को
रात में नींद में इक ख़्वाब डरा देता है

उसका घर वैसा ही है जैसा बना है मेरा
आदतन फिर भी वो शोलों को हवा देता है

बुझ गए जब भी दिए दोष हवाओं का रहा
कोई मौसम कहाँ सूरज को बुझा देता है

स्वर्ण की जलती हुई लंका ही मिलती है उसे
राम को जब कोई हैवान भुला देता है 

कवि -शायर जयकृष्ण राय तुषार 


10 comments:

  1. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (2-8-22} को "रक्षाबंधन पर सैनिक भाईयों के नाम एक पाती"(चर्चा अंक--4509)
    पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    ------------
    कामिनी सिन्हा

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    1. हार्दिक आभार आपका. सादर अभिवादन

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  2. वाह तुषार जी...पद्य की हर विधा आपकी लेखनी की कायल बन जाती है...बहुत खूब...👏👏👏

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    1. आपका हृदय से आभार सर. सादर अभिवादन

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  3. शांत मौसम में हरा पेड़ गिरा देता है
    ये वही जाने किसे, कौन सज़ा देता है..
    गहन चिंतन .. सराहनीय रचना ।

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  4. उम्दा लेखन!
    बेहतरीन।

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  5. सब उजाले में शहँशाह समझते खुद को
    रात में नींद में इक ख़्वाब डरा देता
    वाह!!!
    बहुत ही लाजवाब गजल

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  6. बहुत सुंदर

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  7. वाह! बहुत खूब! दाद स्वीकारें.

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    1. हार्दिक आभार आपका. सादर अभिवादन

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