Thursday 7 July 2022

एक ग़ज़ल -न बादल है न पानी है

चित्र साभार गूगल 


एक ग़ज़ल -न बादल है न पानी है


ये बारिश का ही मौसम है कि ये झूठी कहानी है

तुम्हारे गाँव में सावन न बादल है न पानी है


अब खेतोँ में भी पहले की तरह मंज़र कहाँ कोई

कहाँ अब बाजरे पर झूलती चिड़िया सुहानी है


न बारिश में बदन भींगा न पैरों में सना कीचड़

कृत्रिमता से भरे फूलों में नकली खाद पानी है


अब सखियों के बिना झूला, न मेंहदी का नशा कोई

बिछड़कर अब कोई शिमला, कोई केरल, पिलानी है


नदी की हाँफती लहरों में कितनी दूर जाओगे

नया मल्लाह है लेकिन हरेक नौका पुरानी है


बदलते दौर में खतरा है रिश्तों का सिमट जाना

अब बच्चों की किताबों में कहाँ दादी औ नानी है

जयकृष्ण राय तुषार



चित्र साभार गूगल

5 comments:

  1. नदी की हाँफती लहरों में कितनी दूर जाओगे

    नया मल्लाह है लेकिन हरेक नौका पुरानी है



    बदलते दौर में खतरा है रिश्तों का सिमट जाना

    अब बच्चों की किताबों में कहाँ दादी औ नानी है

    वाह ........ हर शेर लाजवाब ....

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  2. आपकी इस क़ाबिल-ए-दाद ग़ज़ल के पहले ही मिसरे ने दिल पे चोट की है तुषार जी। इस ग़ज़ल को पढ़कर मुझे एक बहुत पुराना शेर याद आ गया -
    पनघटों की रुत कहाँ, अब वो हसीं चेहरे कहाँ
    मंज़रों को वक़्त यादों में बदलकर चल दिया

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    Replies
    1. हार्दिक आभार भाई साहब. सादर प्रणाम

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