निराला |
बैसवारे की मिट्टी में विख्यात कवि लेखक संपादक हुए हैं जिनमें निराला, रामविलास शर्मा, रसखान, नूर, मुल्ला दाऊद रमई काका, शिव मंगल सिंह सुमन, शिव बहादुर सिंह भदौरिया, रूप नारायण पांडे माधुरी के संपादक आदि. इसी मिट्टी को समर्पित एक गीत
एक गीत -शुभ्र दीपक ज्योति यह गंगा किनारे की
तैरती
जल ज्योति
यह गंगा किनारे की.
कीर्ति
सदियों तक
रहेगी बैसवारे की.
जायसी
दाऊद यहाँ
रसखान का माधुर्य,
नूर का है
नूर इसमें
शब्द साधक सूर्य,
भूमि यह
शर्मा, सनेही
और दुलारे की.
शिव बहादुर
जी की
पुरवा बह रही इसमें,
शब्द साधक
सुमन शिव मंगल
रहे जिसमें,
स्वर्ण, चन्दन
हलद इसमें
चमक पारे की.
यह द्विवेदी
भगवती की
यज्ञशाला है,
यहीं जन्मा
एक फक्कड़
कवि निराला है.
माधुरी
माधुर्य लाई
चाँद तारे की.
वाजपेई
सुकवि रमई
और चित्रा हैं,
बैसवारी
अवस्थी
इसमें सुमित्रा हैं,
डलमऊ
की स्वप्न छवि
सुन्दर नज़ारे की.
वतन के खातिर
यहाँ पर
पर्व है बलिदान,
बेनीमाधव जी
का इसमें
शौर्य, गौरव गान,
फूल की
यह गंध
ज्वाला भी अँगारे की.
आज भी
यह एक चन्दन
वन कथाओं का
एक अनहद
नाद इसमें
है ऋचाओं का,
शब्द जल में
चाँदनी की
छवि शिकारे की.
कवि -जयकृष्ण राय तुषार
रसखान |
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार 15 जुलाई 2022 को 'जी रहे हैं लोग विरोधाभास का जीवन' (चर्चा अंक 4491) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
हार्दिक आभार आपका
Deleteवाह वाह,उत्तम भावाभिव्यक्ति।
ReplyDeleteवाह !
ReplyDeleteतैरती
जल ज्योति
यह गंगा किनारे की.
कीर्ति
सदियों तक
रहेगी बैसवारे की...
बहुत सुंदर गीत ।
हार्दिक आभार आपका सादर प्रणाम
Deleteबहुत ही सुन्दर रचना
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका. सादर प्रणाम
Deleteवाह बहुत खूब :)
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