Sunday, 24 July 2022

एक गीत -अब देवास कहाँ सुनता है निर्गुण गीत नईम के


चित्र साभार गूगल 


एक गीत -अब देवास कहाँ सुनता है निर्गुण गीत नईम के 


कोयल चैत न 

सावन कजली

झूले गायब नीम के.

परदेसी हो

गए पुरोहित

काढ़े नहीँ हक़ीम के.


ऐसे मौसम में

मन कैसे

गोकुल या बरसाना हो,

विद्यापति को

कौन सूने

जब यो यो वाला गाना हो,

तुलसी, कबिरा

भूल गए

अब दोहे कहाँ रहीम के.


कला, संस्कृति

अपनी भूली

अंग्रेजी मुँह चाट रही,

सोफ़े पसरे

दालानों में

धूप में झिलँगा खाट रही,

कहाँ कबड्डी

गिल्ली डंडा

कहाँ अखाड़े भीम के.


पत्तल, दोने

रंग न उत्सव

नदी में लटकी डाल कहाँ,

आल्हा, बिरहा

नाच धोबिया

नौटंकी, करताल कहाँ,

बिखर गए हैं

कलाकार सब

बंजारों की टीम के.


लोकरंग में

डूबी संध्या

कहाँ पहाड़ी राग है

फूलों की 

घाटी में  हर दिन 

बादल फटते,आग है,

अब देवास

कहाँ सुनता है

निर्गुण गीत नईम के.

कवि -जयकृष्ण राय तुषार



सभी चित्र साभार गूगल

कवि गीतकार नईम 

2 comments:

  1. चित्रों से सुसज्जित आपका यह गीत अनुपम है तुषार जी। सीधे हृदय में उतरकर तल पर जा पैठता है।

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    1. हार्दिक आभार आपका सर. सादर अभिवादन

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