Saturday, 8 May 2021

एक गीत - फिर गुलाबी फूल ,कलियों से लदेंगी नग्न शाखें

 

चित्र -साभार गूगल 




एक गीत -
फिर गुलाबी फूल ,कलियों से लदेंगी  नग्न शाखें 

फिर  गुलाबी 
फूल ,कलियों से
लदेंगी  नग्न शाखें   |
पर हमारे 
बीच होंगी नहीं 
परिचित कई आँखें |

यह अराजक 
समय ,मौसम 
भूल जाएगा जमाना ,
फिर किताबों में 
पढ़ेंगे गाँव का 
मंज़र  सुहाना ,
देखकर 
हम मौन होंगे 
तितलियों की कटी पाँखेँ |

झील में 
खिलते कंवल,  
मछली नदी में जाल होंगे ,
नहीं होगा 
स्वर तुम्हारा 
साज सब करताल होंगे ,
गाल पर रूमाल 
होंगे 
डबडबाई हुई आँखें |

ज्ञान और विज्ञान 
का सब दम्भ 
कैसे है पराजित ,
प्रकृति के 
उपहास का यह 
लग रहा  परिणाम किंचित ,
अब घरों की 
खिड़कियाँ हैं 
जेल की जैसे सलाखें |

कवि -जयकृष्ण राय तुषार 
चित्र -साभार गूगल 


14 comments:

  1. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा रविवार ( 09-05-2021) को
    "माँ के आँचल में सदा, होती सुख की छाँव।। "(चर्चा अंक-4060)
    पर होगी। चर्चा में आप सादर आमंत्रित है.धन्यवाद

    "मीना भारद्वाज"

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    Replies
    1. हार्दिक आभार आपका |सादर अभिवादन |

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  2. बहुत सुंदर और सार्थक अभिव्यक्ति।

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    Replies
    1. हार्दिक आभार आपका \सादर अभिवादन

      Delete
  3. बहुत सुंदर

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार आपका |सादर अभिवादन

      Delete
  4. बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार आपका |सादर प्रणाम |

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  5. Replies
    1. हार्दिक आभार आपका।सादर अभिवादन

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  6. झझकोरती हुई कृति ।

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    Replies
    1. हार्दिक आभार ।सादर अभिवादन

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  7. बिल्कुल ऐसा ही प्रतित हो रहा है :
    "प्रकृति के
    उपहास का यह
    लग रहा परिणाम किंचित"

    स्वावलोकन के लिए कहती एक मार्मिक रचना।

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