Friday 21 May 2021

एक गीत -मेड़ों पर वसन्त

 

चित्र -साभार गूगल 
एक गीत -मेड़ों पर वसन्त 

लोकरंग 
में वंशी लेकर 
गीत सुनाता है |
मेड़ों पर 
वसन्त का 
मौसम स्वप्न सजाता है |

सुबह -सुबह
उठकर आँखों 
का काजल मलता  है ,
संध्याओं को 
जुगनू बनकर 
घर -घर जलता है ,
नदियों के 
जूड़े -तितली 
के पंख सजाता है |

हल्दी के 
छापे -कोहबर
हुडदंग इसी का है ,,
फूलों की
हर शाख
फूल में रंग इसी का है ,
आँखों की 
भाषा पढ़ने का 
हुनर सिखाता है |

पीला कुर्ता 
पहने सूरज 
डूबे झीलों में ,
यादों की 
खुशबू फैली है 
कोसों -मीलों में ,
यह जीवन 
का सबसे  
अच्छा राग सुनाता है |

कवि -जयकृष्ण राय तुषार 
चित्र -साभार गूगल 

12 comments:

  1. बहुत सुंदर

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    1. हार्दिक आभार आपका आदरणीय

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  2. आँखों की
    भाषा पढ़ने का
    हुनर सिखाता है |---अच्छी रचना...।

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    1. धन्यवाद भाई ।सादर अभिवादन

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  3. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (21-05-2021 ) को 'मेरे घर उड़कर परिन्दे आ गये' (चर्चा अंक 4072 ) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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    1. हार्दिक आभार आपका भाई रवींद्र जी

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  4. वाह बहुत खूब 👍👍❤️❤️

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    1. सुजाता जी आपका हृदय से आभार

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  5. बहुत सुंदर सृजन

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    1. आपका हृदय से आभार।सादर अभिवादन

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