चित्र -साभार गूगल |
लोकरंग
में वंशी लेकर
गीत सुनाता है |
मेड़ों पर
वसन्त का
मौसम स्वप्न सजाता है |
सुबह -सुबह
उठकर आँखों
का काजल मलता है ,
संध्याओं को
जुगनू बनकर
घर -घर जलता है ,
नदियों के
जूड़े -तितली
के पंख सजाता है |
हल्दी के
छापे -कोहबर
हुडदंग इसी का है ,,
फूलों की
हर शाख
फूल में रंग इसी का है ,
आँखों की
भाषा पढ़ने का
हुनर सिखाता है |
पीला कुर्ता
पहने सूरज
डूबे झीलों में ,
यादों की
खुशबू फैली है
कोसों -मीलों में ,
यह जीवन
का सबसे
अच्छा राग सुनाता है |
कवि -जयकृष्ण राय तुषार
बहुत सुंदर
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका आदरणीय
Deleteआँखों की
ReplyDeleteभाषा पढ़ने का
हुनर सिखाता है |---अच्छी रचना...।
धन्यवाद भाई ।सादर अभिवादन
Deleteसुंदर सृजन।
ReplyDeleteहार्दिक आभार मित्र
Deleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (21-05-2021 ) को 'मेरे घर उड़कर परिन्दे आ गये' (चर्चा अंक 4072 ) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
हार्दिक आभार आपका भाई रवींद्र जी
Deleteवाह बहुत खूब 👍👍❤️❤️
ReplyDeleteसुजाता जी आपका हृदय से आभार
Deleteबहुत सुंदर सृजन
ReplyDeleteआपका हृदय से आभार।सादर अभिवादन
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