चित्र -गूगल से साभार |
एक गीत -नीलकंठ कौन बने
नीलकंठ
कौन बने
विषभरी हवाएँ हैं |
भोर की
किरन पीली
संध्यायेँ तेजहीन ,
औषधियों ,
फूलों की
गन्ध खा गई जमीन ,
जंगल में
नरभक्षी
बाघ की कथाएँ हैं |
दरपन पे
धूल जमी
दिन का श्रृंगार गया ,
मौसम
ज्वर बाँट रहा
सगुन दिवस हार गया ,
कौन पढ़े
कौन सुने
बोझिल कविताएं हैं |
गरजो
बरसो मेघों
विपदाएं बह जाएँ ,
जीवन के
राग लिए
सुख के क्षण रह जाएँ ,
हवन कुण्ड
धुआँ भरे
सीली समिधाएँ हैं |
कवि-जयकृष्ण राय तुषार
चित्र -साभार गूगल |
बहुत सुंदर
ReplyDeleteहार्दिक आभार सर
Deleteआपकी कविता में संतप्त मानवता का आर्तनाद है तुषार जी।
ReplyDeleteहार्दिक आभार सर |भयावह स्थिति है ईश्वर सबकी रक्षा करे |
Deleteउम्दा 🌻 👌
ReplyDeleteहार्दिक आभार भाई
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ReplyDeleteगरजो
बरसो मेघों
विपदाएं बह जाएँ ,
जीवन के
राग लिए
सुख के क्षण रह जाएँ ,
हवन कुण्ड
धुआँ भरे
सीली समिधाएँ हैं |...बिल्कुल सत्य कहा आपने,प्रेरक गीत।
सादर अभिवादन |हार्दिक आभार आपका |
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