चित्र -साभार गूगल |
एक गीत-
हर चूल्हे में जले उदासी
रोटी ताजी
हो या बासी ।
हर चूल्हे में
जले उदासी ।
सावन गाए
मौसम झूले,
घर-आँगन में
गुड़हल फूले
यादों में हो
पटना,काशी ।
मान-प्रतिष्ठा
बढ़े देश की,
सीता-गीता
पढ़ें देश की,
सबकी बातें
लगें दुआ सी।
कुशल-क्षेम हो
सबके घर में,
शंखनाद हो
सबके स्वर में,
बैठक गाए
बारहमासी ।
डाल-डाल पर
कोयल बोले,
हरी घास पर
चिरई डोले,
जले खेत में
सत्यानाशी ।
हँसे समुन्दर
पर्वत-घाटी,
दावत में हो
चोखा बाटी,
खुशी रहे
हर घर की दासी।
रोटी ताजी
ReplyDeleteहो या बासी ।
हर चूल्हे में
जले उदासी ।---वाह क्या खूब भावों से परिपूर्ण पंक्तियां हैं...
हार्दिक आभार आपका
Deleteवाह।👌🌻
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteवाह
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (29 -5-21) को "वो सुबह कभी तो आएगी..."(4080) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
--
कामिनी सिन्हा
हार्दिक आभार आपका कामिनी जी
Deleteवाह! बहुत सुंदर बिंब और शानदार तुकांत के साथ अप्रतिम बंध।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Delete👌👌वाह! बहुत ही बेहतरीन 👌👌👌
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका |
Deleteआशा के दीप जलाती सुंदर रचना
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteरोटी ताजी
ReplyDeleteहो या बासी ।
हर चूल्हे में
जले उदासी ।
वाह...सुन्दर रचना👌
हार्दिक आभार आपका
Deleteवाह बेहद उम्दा शब्द चयन
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteउत्तम सृजन
ReplyDeleteआपका हृदय से आभार अनीता जी
Deleteवाह बहुत सुंदर सृजन ।
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