चित्र -साभार गूगल |
एक गीत -
इन्द्रधनुओं को सजा दो फिर दिशाओं में
जिसे देखा
सुना था
अब है कथाओं में |
चाँदनी
सूरज कोई
तारा चिताओं में |
चौंकता हूँ
सुबह ज़िंदा
देखकर ख़ुद को ,
अब नहीं
इससे भयावह
दृश्य कोई हो ,
कब हँसेगा
वक्त फिर
जलसे ,सभाओं में |
प्रकृति मत
रूठो सुहाने
स्वप्न दिखलाओ ,
शुभ करो
अब यह
मरण का गीत मत गाओ ,
वेदपाठी
ज़िंदगी
ढूंढो ऋचाओं में |
लौट आओ
ओ गुलाबी
गन्ध वाले दिन ,
मौसमों से
हरे पत्ते
डर रहे पल -छिन ,
इन्द्रधनुओं को
सजा दो
फिर दिशाओं में |
कवि -जयकृष्ण राय तुषार
सुंदर सृजन।
ReplyDeleteहार्दिक आभार भाई
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