Thursday 6 May 2021

एक गीत -इन्द्रधनुओं को सजा दो फिर दिशाओं में

 

चित्र -साभार गूगल 

एक गीत -

इन्द्रधनुओं को सजा दो फिर दिशाओं में 


जिसे देखा 
सुना था 
अब है कथाओं में |
चाँदनी 
सूरज कोई 
तारा चिताओं में |

चौंकता हूँ 
सुबह ज़िंदा 
देखकर ख़ुद को ,
अब नहीं 
इससे भयावह 
दृश्य कोई हो ,
कब हँसेगा 
वक्त फिर 
जलसे ,सभाओं में |

प्रकृति मत 
रूठो सुहाने 
स्वप्न दिखलाओ ,
शुभ करो 
अब यह 
मरण का गीत मत गाओ ,
वेदपाठी 
ज़िंदगी 
ढूंढो ऋचाओं में |

लौट  आओ 
ओ गुलाबी 
गन्ध वाले  दिन ,
मौसमों से 
हरे पत्ते 
डर रहे पल -छिन ,
इन्द्रधनुओं को 
सजा दो 
फिर दिशाओं में |
कवि -जयकृष्ण राय तुषार 

2 comments:

आपकी टिप्पणी हमारा मार्गदर्शन करेगी। टिप्पणी के लिए धन्यवाद |

एक ग़ज़ल -ग़ज़ल ऐसी हो

  चित्र साभार गूगल  एक ग़ज़ल - कभी मीरा, कभी तुलसी कभी रसखान लिखता हूँ  ग़ज़ल में, गीत में पुरखों का हिंदुस्तान लिखता हूँ  ग़ज़ल ऐसी हो जिसको खेत ...