Monday 3 May 2021

एक गीत -नदी के तट पर पियासे हिरन मरते हैं


चित्र -साभार गूगल 

एक गीत -
नदी के तट पर पियासे हिरन मरते हैं 

हरे पत्ते 
शाख से 
अब फूल झरते हैं |
नदी के 
तट पर 
पियासे हिरन मरते हैं |

अब उजाले 
हो गए हैं 
क़ैदखानों  से ,
चीखता है 
सिर्फ़ 
सन्नाटा मकानों से ,
नींद में 
अब आँख से 
भी स्वप्न डरते हैं |

मौन हैं सारे 
फरेबी 
सत्यवादी दल ,
क्या पता 
बहुरूपिए 
मौसम करेंगे छल ,
फेफड़ों में 
हम कृत्रिम 
सी साँस भरते हैं |

खाँसती है 
मास्क पहने 
चाँदनी  पीली ,
आग कैसे 
जले माचिस 
हो गयी गीली ,
ये बुझे 
चूल्हे हवा में 
धुएँ भरते हैं |

वायदे 
दिन के अधूरे 
बहस जारी है ,
आदमीयत 
पोल पर 
रस्सी -मदारी है ,
इन्हीं सँकरे 
रास्तों  से 
हम गुजरते हैं |

कवि -जयकृष्ण राय तुषार 
चित्र -साभार गूगल 


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