चित्र -गूगल से साभार |
गंगा की वेदना -एक गीत
गंगा से प्रेम महज
पूजा की थाल में |
शहरों में पांव फंसे
गाद भरे जाल में |
आंख डबडबायी है
धार धार रोती है ,
नींद में कराह रही
मैया कब सोती है ,
जाने कब सीता सी
गुम हो पाताल में |
शंकर के माथे से
धवल धार आयी थी ,
फूलों की खुशबू से
सृष्टि महमहायी थी ,
देखता भागीरथ चुप
माँ को इस हाल में |
वसन हुए मैले सब
चेहरे पर तेज नहीं ,
काँटों से राह भरी
फूलों की सेज नहीं ,
एक महासागर थी
समा गयी ताल में |
शक्तिहीन धारा में
पर्व हम मनाते हैं ,
टूटते कगारों पर
स्वस्ति -मन्त्र गाते हैं ,
जन -जन का पाप हरे
स्वयं बुरे हाल में |
शक्तिहीन धारा में
पर्व हम मनाते हैं ,
टूटते कगारों पर
स्वस्ति -मन्त्र गाते हैं ,
जन -जन का पाप हरे
स्वयं बुरे हाल में |
चित्र -गूगल से साभार |
बढ़िया रचना
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी ...
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