चित्र -गूगल से साभार |
आप सभी को होली की बधाई एवं शुभकामनाएँ
एक गीत -होली
आम कुतरते हुए सूए से
मैना कहे मुंडेर की |
अबकी होली में ले आना
भुजिया बीकानेर की |
गोकुल ,वृन्दावन की हो
या होली हो बरसाने की ,
परदेसी की वही पुरानी
आदत है तरसाने की ,
उसकी आँखों को भाती है
कठपुतली आमेर की |
इस होली में हरे पेड़ की
शाख न कोई टूटे ,
मिलें गले से गले
पकड़कर हाथ न कोई छूटे ,
हर घर -आंगन महके खुशबू
गुड़हल और कनेर की |
चौपालों पर ढोल मजीरे
सुर गूंजे करताल के ,
रुमालों से छूट न पायें
रंग गुलाबी गाल के ,
फगुआ गाएं या फिर
बांचेंगे कविता शमशेर की |
कवि जयकृष्ण राय तुषार
[मेरे इस गीत को आदरणीय अरुण आदित्य द्वारा अमर उजाला में प्रकाशित किया गया था मेरे संग्रह में भी है |व्यस्ततावश नया लिखना नहीं हो पा रहा है |
चित्र -गूगल से साभार |
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (12-03-2017) को
ReplyDelete"आओजम कर खेलें होली" (चर्चा अंक-2604)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteइस होली में हरे पेड़ की
ReplyDeleteशाख न कोई टूटे ,
मिलें गले से गले
पकड़कर हाथ न कोई छूटे ,
हर घर -आंगन महके खुशबू
अति सुन्दर पन्कतियाँ
गुड़हल और कनेर की |
आप सभी का हार्दिक आभार
ReplyDeleteइतनी सुंदर रचना पढ़ने को मिली, साझा करने हेतु सादर आभार
ReplyDeleteApke लेखन को जो कि बनारस पे है, अगर सहमति हो तो साभार सहित अपने पेज पे पोस्ट कर सकता हूं?
ReplyDeleteUmda post
ReplyDeletepublish your book with Book Bazooka