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चित्र -साभार गूगल |
एक गीत -
ऐसा मौसम फिर कब आयेगा
बंजर में फूल की कहानी हो
बेला महके या रातरानी हो
नदियों में निर्मल सा पानी हो
पानी में पारियों की रानी हो
ऐसा मौसम फिर कब आयेगा
आँगन में उतरा इक बादल हो
मृगनयनी आँखों में काजल हो
झीलों में खिला -खिला शतदल हो
सूनेपन में वंशी -मादल हो
बजरे पर तानसेन गायेगा
ऐसा मौसम फिर कब आयेगा
खेतों में बासमती धान हो
मेड़ों की दूब पर किसान हो
होंठो के बीच दबा पान हो
मंदिर में यज्ञ और दान हो
कोई तो शंख को बजाएगा
ऐसा मौसम फिर कब आयेगा
मेघों में नाचती बदलियाँ हो
फूलों पर भ्रमर हों, तितलियाँ हों
तालों में तैरती मछलियाँ हों
झूलों के होंठ पर कजलियाँ हों
सावन फिर चूड़ियाँ सजायेगा
ऐसा मौसम फिर कब आयेगा
छत तोड़ें कहकहे दालानों के शटर उठें बंद सब दुकानों के
झुमके हों रत्नजड़ित कानों के
नुक्कड़ फिर सजें चाय -पानों के
धूपी चश्मा दिल छू जायेगा
ऐसा मौसम फिर कब आयेगा
संध्या को रोज दिया -बाती हो
धूप-छाँह आती हो जाती हो
शुभ का संदेश लिए पाती हो
नींद सुखद स्वप्न को सजाती हो
सूरज फिर किरन को सजायेगा
ऐसा मौसम फिर कब आयेगा
कवि -जयकृष्ण राय तुषार
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चित्र -साभार गूगल |