चित्र साभार गूगल |
एक गीत-तुम ज़रा बेफ़िक्र होकर खिलखिला दो
निर्वसन
पतझार में ये नीम
इसे अंजलि भर नदी का जल पिला दो।
छाँह लौटेगी
हरापन भी
तुम ज़रा बेफ़िक्र होकर खिलखिला दो ।
आज फिर
मौसम सुहाना है
काम का छोड़ो बहाना यार ,
झील में
खिलते कँवल के फूल
राजहंसों का मिलन अभिसार,
बादलों में
चाँद सोया है
तुम हथेली पर अभी दीये जला दो ।
उम्र को
दरपन दिखाना मत
सादगी फिर कर रही श्रृंगार,
चहचहाती
साँझ सिन्दूरी
धूप का घटने लगा आकार,
इन कमीजों के
बटन टूटे
रफ़ू छोड़ो सिल्क के कुर्ते सिला दो ।
कवि जयकृष्ण राय तुषार
नीम चित्र साभार गूगल |
बहुत सुंदर मनभावन श्रृंगार रचना तुषार जी |लौकिक प्रेम की आलौकिक अभिव्यक्ति |
ReplyDeleteआपका हृदय से आभार।आपकी खूबसूरत अर्थपूर्ण टिप्पणी है
Deleteहमारा मनोबल बढ़ाती है।बेहतर सृजन की प्रेरणा देती है।सादर अभिवादन
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना आज शुक्रवार 12 मार्च 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन " पर आप भी सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद! ,
हार्दिक आभार आपका
Deleteनीम का भी श्रृंगार होगा , अब उम्र तो वापस नहीं लायी जा सकती पर सिल्क का कुरता पहन ऐश कीजिये :)
ReplyDeleteसुन्दर रचना
सादर प्रणाम।इसीलिए तो लिखा है उम्र को दरपन दिखाना मत ।
Deleteसादगी भी कर रही श्रृंगार।आपका हार्दिक आभार
उम्र को
ReplyDeleteदरपन दिखाना मत
सादगी फिर कर रही श्रृंगार,
बहुत खूब,सादर नमन आपको
आपका हृदय से आभार।सादर नमन आपको और आपकी सहजता को।
Deleteवाह सुंदर व्यंजनाएं मोहक सृजन।
ReplyDeleteआपका हृदय से आभार आदरणीया
Deleteनिर्वसन
ReplyDeleteपतझर में ये नीम
इसे अंजलि भर नदी का जल पिला दो।
छाँह लौटेगी
हरापन भी
तुम ज़रा बेफ़िक्र होकर खिलखिला दो ।
..थोड़े में बहुत ..
..
हार्दिक आभार आपका आदरणीया कविता जी ।सादर प्रणाम आपको
Deleteसुंदर सृजन।बहुत खूब,सादर नमन आपको हर बार की तरह बहुत लाजवाब
ReplyDeleteभाई संजय जी सादर अभिवादन ।हार्दिक आभार आपका
Deleteइस कविता पर टिप्पणी करने की अर्हता मैं नहीं रखता हूँ तुषार जी । स्तब्ध रह गया हूँ, वाणी मूक हो गई है इसका पारायण करके, कहूं भी तो क्या कहूं ?
ReplyDeleteआप शब्दों के जादूगर या फिल्मों के राजकपूर हैं। राजकपूर जी बहुत शालीनता से सीधा सादा रोल करते थे लेकिन जिसे छू देते थे वह सदाबहार अभिनेता या नायिका हो जाता था।सादर प्रणाम आपकी सहजता को
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