चित्र साभार गूगल |
एक गीत-लेकिन उसके मन में अब भी पटना -काशी है
अन्तरंग था
मित्र हमारा
मगर प्रवासी है ।
अब भी
उसकी स्मृतियों
में पटना-काशी है ।
पासपोर्ट
वीज़ा की चिंता
उसे सताती है,
माँ उदास हो
उड़ता हुआ
जहाज दिखाती है,
धन दौलत
सबकुछ
लेकिन दिनचर्या दासी है।
नए-पुराने
संस्कार की
चक्की में पिसते,
सुपर मार्केट वाले
बच्चे
भूले सब रिश्ते,
मौसी
दादी,नानी की भी
याद जरा सी है ।
मन संगम
की डुबकी वाला
चित्र सजाता है,
आभासी
दुनिया में
बैठा पर्व मनाता है,
नीरस है
परदेस का
मौसम बारहमासी है ।
जयकृष्ण राय तुषार
चित्र साभार गूगल |
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 14 मार्च 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteप्रवासी सच ही अपने देश को हमेशा ही याद करते होंगे . सुन्दर गीत
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका।सादर प्रणाम
Deleteबहुत सुन्दर और सार्थक।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय
Deleteमन पर कहाँ बस चलता है किसी का, बुद्धि लाख समझाती रहे पर मन तो उस रस में डूबना चाहता है जहाँ कभी उसे चैन मिल था, अपना घर, मां और अपना देश ही तो मन का संबल है
ReplyDeleteआपका हृदय से आभार।सादर प्रणाम
Deleteपलायन संस्कृति को संदर्भ में रखकर रची गई सुंदर सारगर्भित रचना, बहुत बहुत बधाई ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका |सादर अभिवादन
Deleteबहुत बहुत सुन्दर
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