चित्र साभार गूगल |
एक गीत-झील से चाँद कोई निकलकर गया
झील से
चाँद कोई
निकलकर गया ।
रंग
मौसम का
सारा बदलकर गया ।
दिन
उदासी का
मेहँदी- महावर हुआ,
बालमन
से कोई
तितलियों को छुआ,
पाँव
भारी था
कोई सम्हलकर गया ।
डाल पर
एक गुड़हल
खिला है अभी,
एक ख़त
दोस्ती का
मिला है अभी,
वन में
हिरनों का
जोड़ा उछलकर गया।
ये हवा
विषभरी
कोई चन्दन बने ,
जिसमें
पारिजात
फूले वो नन्दन बने,
स्वप्न पर
मेरे कोई
अमलकर गया ।
जयकृष्ण राय तुषार
वाह! बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका |सादर अभिवादन
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (24-03-2021) को "रंगभरी एकादशी की हार्दिक शुफकामनाएँ" (चर्चा अंक 4015) पर भी होगी।
ReplyDelete--
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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आपका हृदय से आभार |सादर अभिवादन
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteहार्दिक आभार सर
Deleteबहुत बहुत सराहनीय रचना
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteसुंदर सृजन! सार्थक और सारगर्भित!--ब्रजेंद्रनाथ
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteझील से
ReplyDeleteचाँद कोई
निकलकर गया ।
रंग
मौसम का
सारा बदलकर गया ....कितनी मासूम सी सुंदर कविता❤️
हार्दिक आभार आपका |
Deleteमनोहर ... !!
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