Monday, 22 March 2021

एक गीत-झील से चाँद कोई निकलकर गया

चित्र साभार गूगल


एक गीत-झील से चाँद कोई निकलकर गया

झील से

चाँद कोई

निकलकर गया ।

रंग

मौसम का

सारा बदलकर गया ।


दिन

उदासी का

मेहँदी- महावर हुआ,

बालमन

से कोई

तितलियों को छुआ,

पाँव

भारी था

कोई सम्हलकर गया ।


डाल पर

एक गुड़हल 

खिला है अभी,

एक ख़त

दोस्ती का

मिला है अभी,

वन में

हिरनों का

जोड़ा उछलकर गया।


ये हवा

विषभरी

कोई चन्दन बने ,

जिसमें

पारिजात

फूले वो नन्दन बने,

स्वप्न पर

मेरे कोई

अमलकर गया ।

जयकृष्ण राय तुषार

13 comments:

  1. वाह! बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति ।

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    1. हार्दिक आभार आपका |सादर अभिवादन

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (24-03-2021) को   "रंगभरी एकादशी की हार्दिक शुफकामनाएँ"   (चर्चा अंक 4015)   पर भी होगी। 
    --   
    मित्रों! कुछ वर्षों से ब्लॉगों का संक्रमणकाल चल रहा है। आप अन्य सामाजिक साइटों के अतिरिक्त दिल खोलकर दूसरों के ब्लॉगों पर भी अपनी टिप्पणी दीजिए। जिससे कि ब्लॉगों को जीवित रखा जा सके। चर्चा मंच का उद्देश्य उन ब्लॉगों को भी महत्व देना है जो टिप्पणियों के लिए तरसते रहते हैं क्योंकि उनका प्रसारण कहीं हो भी नहीं रहा है। ऐसे में चर्चा मंच विगत बारह वर्षों से अपने धर्म को निभा रहा है। 
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --  

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    Replies
    1. आपका हृदय से आभार |सादर अभिवादन

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  3. बहुत सुंदर

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  4. बहुत बहुत सराहनीय रचना

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  5. सुंदर सृजन! सार्थक और सारगर्भित!--ब्रजेंद्रनाथ

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  6. झील से

    चाँद कोई

    निकलकर गया ।

    रंग

    मौसम का

    सारा बदलकर गया ....कितनी मासूम सी सुंदर कविता❤️

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