Thursday, 4 March 2021

एक ग़ज़ल -रंगोली की उँगलियों को ये पिचकारी सिखाती है

 

चित्र-साभार गूगल 

आदि शंकराचार्य महान पंडित मंडन मिश्र को हरा दिए थे लेकिन उनकी विदुषी पत्नी भारती से काम के प्रश्न पर पराजित हुए थे क्योंकि ब्रह्मचारी थे।शंकर से मेरा आशय आदि गुरु शंकराचार्य जी से ही है।सादर

एक ग़ज़ल-

रंगोली की उँगलियों को ये पिचकारी सिखाती है 

तजुर्बे से लड़कपन को समझदारी सिखाती है 

ये माँ ! रोते हुए बच्चे को किलकारी सिखाती है 


ये हिन्दू है तो गीता और रामायण,पढ़ाती है

मुसलमा हो तो रोज़ा और इफ्तारी सिखाती है


ब्रितानी फौज़ से लड़ जाती है झाँसी की रानी बन

नमक का हक़ अदा करना भी झलकारी सिखाती है


हमारे पर्व दिल में रौशनी और रंग भरते हैं 

रंगोली फागुनी मौसम में पिचकारी सिखाती है 


भरोसा अब भी अपनी देश की सेना पे कायम है

जो सरहद की हिफ़ाज़त और वफ़ादारी सिखाती है


किसी की संधि बीजिंग से किसी की पाक से गुप् चुप

सियासत भी वतन के साथ गद्दारी सिखाती है 


अंह जब ज्ञान का बढ़ जाय शंकर हार जाता है 

प्रसव का ज्ञान दुनिया को महज नारी सिखाती है 


भ्रमर ,तितली ,पतंगे ,संत ,आशिक सब यहाँ आते 

सभी को बाँटना खुशबू ये फुलवारी सिखाती है 


ये दुनिया नाट्यशाला है सभी का रोल अपना है

विदूषक को हँसाने की अदाकारी सिखाती है


ये लड़की चल रही रस्सी पे इसको मत हुनर कहना 

गरीबी भी जमाने को कलाकारी सिखाती है 


कवि /शायर -जयकृष्ण राय तुषार 

चित्र साभार गूगल 


21 comments:

  1. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 05-03-2021) को
    "ख़ुदा हो जाते हैं लोग" (चर्चा अंक- 3996)
    पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    धन्यवाद.


    "मीना भारद्वाज"

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार मीना जी आपका।आपको हृदय से अभिवादन

      Delete
  2. आह तुषार जी ! दिल जीत लिया आपकी ग़ज़ल ने ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. आदरणीय माथुर साहब आपका हृदय से शुक्रिया।सादर प्रणाम सहित

      Delete
  3. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 04 मार्च 2021 को साझा की गई है.........  "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपका हृदय से आभार आदरणीय

      Delete
    2. अदरणीय अग्रवाल साहब मैं जब भी आपका लिंक यहाँ से खोलता हूँ नहीं खुलता |पता नहीं क्यों

      Delete
  4. किसी की संधि बीजिंग से किसी की पाक से गुप् चुप

    सियासत भी वतन के साथ गद्दारी सिखाती है

    गज़ब ही लिखा है ।बहुत बढ़िया

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपका हृदय से आभार |सादर प्रणाम

      Delete
  5. Replies
    1. हार्दिक आभार अदरणीय |सादर प्रणाम

      Delete
  6. सुंदर शब्दों के समायोजन के साथ, शानदार ग़ज़ल के लिए आपको बधाई।

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार आपका आदरणीय

      Delete
  7. वाह!बहुत सुंदर ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपका हृदय से आभार आदरणीया अनिता जी

      Delete
  8. हमेशा की तरह लाज़बाब,सादर नमन आपको

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपका हृदय से आभार आदरणीया कामिनी जी

      Delete
  9. वाह!!!
    लाजवाब गजल...एक से बढ़कर एक शेर।

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपका बहुत बहुत आभार।सादर अभिवादन

      Delete
  10. तजुर्बे से लड़कपन को समझदारी सिखाती है
    ये माँ ! रोते हुए बच्चे को किलकारी सिखाती है

    वाह !!!
    उम्दा ग़ज़ल !!!

    ReplyDelete
    Replies
    1. आदरणीया डॉ0 शरद जी आपका हृदय से आभार।सादर प्रणाम

      Delete

आपकी टिप्पणी हमारा मार्गदर्शन करेगी। टिप्पणी के लिए धन्यवाद |

एक ग़ज़ल -नया साल

  चित्र साभार गूगल  एक ग़ज़ल -आगाज़ नए साल का भगवान नया हो  मौसम की कहानी नई उनवान नया हो  आगाज़ नए साल का भगवान नया हो  फूलों पे तितलियाँ हों ब...