Thursday, 25 February 2021

एक ग़ज़ल-धर्मग्रन्थों में ही किस्सा रह गया परिजात का

 

चित्र साभार गूगल

एक ग़ज़ल


कुछ हुनर कुछ दुश्मनों से धन मिला ख़ैरात का

हर गली धरना,प्रदर्शन चल रहा हज़रात का


बादलों में छिपके जो दिन में अँधेरा कर गया

वह भी सूरज आसमानी था मगर बरसात का


कैक्टस से इस क़दर हमको मोहब्बत हो गई

धर्म ग्रन्थों में ही किस्सा रह गया परिजात का


आजकल सब भीड़ में शामिल हुए जाते हैं बस

पूछते भी हैं नहीं जलसा यहाँ किस बात का


तर्क से मिल बैठ के मसलों का हल होता रहे

अब तमाशा बन्द होना चाहिए उत्पात का


लोकशाही को भी संजीदा बनाना चाहिए

दर्द उसको भी समझना चाहिए सुकरात का


एक ही भाषण सियासत जेब में रखती रही

पुल का उद्घाटन हो या जलसा किसी बारात का

जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल
परिजात



जयकृष्ण राय तुषार

12 comments:

  1. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 26-02-2021) को
    "कली कुसुम की बांध कलंगी रंग कसुमल भर लाई है" (चर्चा अंक- 3989)
    पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    धन्यवाद.


    "मीना भारद्वाज"

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  2. पारिजात के प्रति मोह जगाती सुन्दर ग़ज़ल।

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    1. हार्दिक आभार सर |हिमालय ही तो पारिजात का उपवन है |

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  3. बहुत सुंदर

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  4. लोकशाही को भी संजीदा बनाना चाहिए

    दर्द उसको भी समझना चाहिए सुकरात का



    एक ही भाषण सियासत जेब में रखती रही

    पुल का उद्घाटन हो या जलसा किसी बारात का
    वाह !!! बहुत खूब !

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  5. आज के हालातों पर सटीक बयान

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    Replies
    1. आपका हृदय से आभार अनीता जी

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  6. कैक्टस से इस क़दर हमको मोहब्बत हो गई

    धर्म ग्रन्थों में ही किस्सा रह गया परिजात का
    जब लोग काँटों से ही प्यार करने लगेंगे तो फूलों का अस्तित्व तो समाप्त होगा ही,
    लाज़बाब सृजन,सादर नमन आपको

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  7. बहुत बढ़िया
    क्या बात बहुत ही फिलौसोफिकल मूड में हैं

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