Saturday, 30 January 2021

एक ग़ज़ल -आकाशवाणी को समर्पित एक ग़ज़ल -रेडियो भी तो परिंदो सी उड़ानों में रही

आकाशवाणी इलाहाबाद के वर्तमान
और कुछ सेवानिवृत्त अधिकारी 


एक ग़ज़ल -आकाशवाणी को समर्पित एक ग़ज़ल -

रेडियो भी तो परिंदो सी उड़ानों में रही  


नज़्म में ,गीत में ,गज़लों में फ़सानों में रही 

रेडियो भी तो परिंदो सी उड़ानों में रही 


इसके परिधान का हर रंग लुभाता है हमें 

बांसुरी ,तबला ये करताल ,पियानों में रही 


इसके होठों पे हरेक भाषा ,विभाषा ,बोली 

ज्ञान- विज्ञान ,कला सारे घरानों में रही 


चुलबुली ,शोख ,हसीना ये पुजारिन भी यही 

औरतों ,बच्चों ,बुजुर्गों में ,जवानों में रही 


जंग की बात हो ,सरहद हो या मौसम की ख़बर 

खेल में,मेलों में ,बाज़ार,दुकानों में रही 


सबकी उम्मीद है ये सबका भरोसा भी यही 

डाक्टर बनके ये रोगी के ठिकानों में रही 


लेखकों ,कवियों ,कलाकारों की महफ़िल है यही

सात सुर, जादुई बंदिश लिए कानों में रही 


कहकहे ,रंग भी अभिनय के, निराले इसके 

बनके निर्गुण ,कभी बिरहा ये किसानों में रही 


कवि /शायर  -जयकृष्ण राय तुषार 

चित्र -साभार गूगल 

चित्र -साभार गूगल रेडियो 

12 comments:

  1. बहुत बढ़िया

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (31-01-2021) को   "कंकड़ देते कष्ट"    (चर्चा अंक- 3963)    पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-    
    --
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

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  3. वाह वाह ! तुषार जी ! क्या कहने हैं इस अनूठी ग़ज़ल के !

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  4. बहुत ही सुन्दर रचना

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