Saturday, 2 January 2021

एक ताज़ा ग़ज़ल -कितनी हसीन है ये मियाँ लखनऊ की शाम

30 दिसंबर हिन्दी संस्थान मे स्थापना दिवस पर काव्य संध्या 

 

सुप्रसिद्ध ग़ज़ल गायिका बेगम अख़्तर
चित्र साभार गूगल
 

एक ताज़ा ग़ज़ल -

कितनी हसीन है ये मियाँ लखनऊ की शाम 


तहजीब और अदब के हैं किस्से जहाँ तमाम 

कितनी हसीन है ये मियाँ लखनऊ की शाम 


इसके सियासी रंग के चर्चे हैं दूर तक 

इसमें अटल के गीत मोहब्बत के हैं पैगाम 


इसकी कशीदाकारी में  है लखनवी मिजाज़ 

टुंडे कबाब, भूल भुलैया ,चिकन का काम 


कैसे करें तरीफ़ यहाँ के मेयार की 

गोकुल  के कृष्ण पहले यहीं थे अवध के राम 


उड़ती ,कटी पतंगे ,छतों पर ,यहाँ के  हैं 

भूलें मलीहाबाद क्यों  खाएं हैं जिसके आम 


नौशाद की मौसीक़ी ,और बेगम की गायिकी 

इनके बिना कहाँ है मुकम्मल यहाँ की शाम 


पूजा ,नमाज़ ,प्रार्थना ,सूफ़ी ,सबद के रंग 

सबका यहाँ पे होता जमाने से एहतराम 

कवि /शायर -जयकृष्ण राय तुषार 

भूल भुलैया लखनऊ 


14 comments:

  1. बहुत अच्छी सामयिक रचना प्रस्तुति
    नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं

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    1. हार्दिक आभार आपका कविता जी |आपको भी नववर्ष की शुभकामनायें

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  2. बहुत सुन्दर,
    बेहतरीन ग़ज़ल।
    बधाई हो आपको।

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  3. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 03 जनवरी 2021 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. बहुत सुंदर ! दिल को छू जाने वाली रचना जो पढ़ने वाले के मन को लखनऊ की ओर उड़ा ले चले ।

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  5. सुन्दर रचना

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