30 दिसंबर हिन्दी संस्थान मे स्थापना दिवस पर काव्य संध्या |
सुप्रसिद्ध ग़ज़ल गायिका बेगम अख़्तर चित्र साभार गूगल |
एक ताज़ा ग़ज़ल -
कितनी हसीन है ये मियाँ लखनऊ की शाम
तहजीब और अदब के हैं किस्से जहाँ तमाम
कितनी हसीन है ये मियाँ लखनऊ की शाम
इसके सियासी रंग के चर्चे हैं दूर तक
इसमें अटल के गीत मोहब्बत के हैं पैगाम
इसकी कशीदाकारी में है लखनवी मिजाज़
टुंडे कबाब, भूल भुलैया ,चिकन का काम
कैसे करें तरीफ़ यहाँ के मेयार की
गोकुल के कृष्ण पहले यहीं थे अवध के राम
उड़ती ,कटी पतंगे ,छतों पर ,यहाँ के हैं
भूलें मलीहाबाद क्यों खाएं हैं जिसके आम
नौशाद की मौसीक़ी ,और बेगम की गायिकी
इनके बिना कहाँ है मुकम्मल यहाँ की शाम
पूजा ,नमाज़ ,प्रार्थना ,सूफ़ी ,सबद के रंग
सबका यहाँ पे होता जमाने से एहतराम
कवि /शायर -जयकृष्ण राय तुषार
भूल भुलैया लखनऊ |
बहुत अच्छी सामयिक रचना प्रस्तुति
ReplyDeleteनववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं
हार्दिक आभार आपका कविता जी |आपको भी नववर्ष की शुभकामनायें
Deleteबहुत सुन्दर,
ReplyDeleteबेहतरीन ग़ज़ल।
बधाई हो आपको।
हार्दिक आभार सर
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 03 जनवरी 2021 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteसुन्दर सृजन
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteसुन्दर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteबहुत सुंदर ! दिल को छू जाने वाली रचना जो पढ़ने वाले के मन को लखनऊ की ओर उड़ा ले चले ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteहार्दिक आभार सर
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