चित्र -साभार गूगल |
एक ताज़ा -ग़ज़ल-नया शेर सुनाता हूँ कहाँ
अपने बच्चों से कभी सच को बताता हूँ कहाँ
इसलिए ख़्वाब में परियाँ हैं मैं आता हूँ कहाँ
हर किसी दौर में,तू मीर के दीवान में है
तुझको पढ़ता हूँ नया शेर सुनाता हूँ कहाँ
मेरी आँखें हैं मेरी नींद भी सपना भी मेरा
मैं सियासत की तरह ख़्वाब दिखाता हूँ कहाँ
जिन्दगी, शेर,बहर, नुक़्ते में उलझाती रही
घर मेरा ज़ुल्फ़ सा बिखरा है सजाता हूँ कहाँ
मोतियाँ ,सीपियाँ सब ले गए जाने वाले
मैं समंदर हूँ हलाहल को दिखाता हूँ कहाँ
सादर नमस्कार,
ReplyDeleteआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 15-01-2021) को "सूर्य रश्मियाँ आ गयीं, खिली गुनगुनी धूप"(चर्चा अंक- 3947) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद.
…
"मीना भारद्वाज"
हार्दिक आभार आपका मीना जी
Deleteवाह!!
ReplyDeleteलाजवाब गजल...।
हार्दिक आभार आपका
Deleteमोतियाँ ,सीपियाँ सब ले गए जाने वाले
ReplyDeleteमैं समंदर हूँ हलाहल को दिखाता हूँ कहाँ ?
बहुत सुंदर शेरोन से सजी रचना तुषार जी | मकर संक्रांति पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई | सबका मंगल हो |
हार्दिक आपका आदरणीया |आपको भी हार्दिक शुभकामनायें
Deleteसुन्दर ग़ज़ल।
ReplyDeleteमकर संक्रान्ति का हार्दिक शुभकामनाएँ।
हार्दिक आभार सर
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक आभार सर
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteआपका हार्दिक आभार
Deleteवाह
ReplyDeleteबहुत अच्छी गजल
बधाई
आपका हृदय से आभार
Deleteबहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक आभार सर
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