Monday, 25 January 2021

एक ग़ज़ल देश के नाम -कहीं से लौट के आऊँ तुझी से प्यार रहे

 

तिरंगा -जय हिन्द जय भारत वन्देमातरम 
गणतन्त्र  की पूर्व  पर संध्या पर  देशवासियों   

को जयहिंद और शुभकमनाएं 

एक ग़ज़ल देश के नाम -

कहीं से लौट के आऊँ तुझी से प्यार रहे 


हवा ,ये फूल ,ये खुशबू ,यही गुबार रहे 

कहीं से लौट के आऊँ तुझी से प्यार रहे 


मैं जब भी जन्म लूँ गंगा तुम्हारी गोद रहे 

यही तिरंगा ,हिमालय ये हरसिंगार रहे 


बचूँ तो इसके मुकुट का मैं मोरपंख बनूँ 

मरूँ  तो नाम शहीदों में ये शुमार रहे 


ये मुल्क ख़्वाब से सुंदर है जन्नतों से बड़ा 

यहाँ पे संत ,सिद्ध और दशावतार रहे 


मैं जब भी देखूँ लिपट जाऊँ पाँव को छू लूँ 

ये माँ का कर्ज़ है चुकता न हो उधार रहे 


भगत ,आज़ाद औ बिस्मिल ,सुभाष भी थे यहीं 

जो इन्क़लाब लिखे सब इन्हीं के यार रहे 


आज़ादी पेड़ हरा है ये मौसमों से कहो 

न सूख पाएँ परिंदो को एतबार रहे 


तमाम रंग नज़ारे ये बाँकपन ये शाम 

सुबह के फूल पे कुछ धूप कुछ 'तुषार 'रहे 


कवि /शायर -जयकृष्ण राय तुषार 

चित्र -साभार गूगल 

चित्र -साभार गूगल -भारत के लोकरंग 


10 comments:

  1. बहुत सुन्दर

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  2. बहुत सुन्दर।
    72वें गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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  3. मैं जब भी देखूँ लिपट जाऊँ पाँव को छू लूँ
    ये माँ का कर्ज़ है चुकता न हो उधार रहे ।
    बहुत सुंदर संदेश!
    गणतंत्र दिवस की अशेष शुभकामनाएँ!--ब्रजेंद्रनाथ

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  4. ये हवा, ये फूल, ये खुशबू, यही गुबार रहे; कहीं से लौट के आऊँ तुझी से प्यार रहे । आपने तो समां बांध दिया तुषार जी ।

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    1. हार्दिक आभार आपका भाई जितेंद्र जी

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  5. मैं जब भी जन्म लूँ गंगा तुम्हारी गोद रहे
    यही तिरंगा ,हिमालय ये हरसिंगार रहे !!!!!
    बहुत खूब और वाह की हकदार आपकी कलम तुषार जी | माँ भारती की माटी को समर्पित ये स्नेहिल उदगार अपने आप में बहुत विशेष हैं | कलम का ये प्रवाह यूँ ही जारी रहे | हार्दिक शुभकामनाएं|

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    1. आपकी खूबसूरत टिप्पणियों से अपार प्रसन्नता मिलती है और कुछ नए सृजन की प्रेरणा मिलती है |दिल से आपका शुक्रिया |

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