एक ताज़ा ग़ज़ल-डूबने वालों ने छोड़ा नहीं पानी कोई
अब न दरिया में भँवर है न रवानी कोई
डूबने वालों ने छोड़ा कहाँ पानी कोई
कुछ कहा तुमने कुछ हमने भी चलो भूल गए
कल की बातों का कहाँ रह गया मानी कोई
कैमरा देखके हँसने का हुनर भूल गए
ढूँढते हैं चलो तस्वीर पुरानी कोई
एक मूरत से लगा दिल तो महल छोड़ दिया
इश्क़ में अब कहाँ मीरा सी दीवानी कोई
वीडियो गेम लिए सो गए बच्चे सारे
अब न राजा है न परियों की कहानी कोई
जयकृष्ण राय तुषार
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 11 जनवरी 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (12-1-21) को "कैसे बचे यहाँ गौरय्या" (चर्चा अंक-3944) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
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कामिनी सिन्हा
हार्दिक आभार आपका
Deleteवाह!!!!
ReplyDeleteलाजवाब गजल।
हार्दिक आभार आपका
Deleteवाह
ReplyDeleteहार्दिक आभार
Deleteबहुत सुन्दर सृजन।
ReplyDeleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteहार्दिक आभार श्वेता जी
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteसुन्दर भावाभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार अमृता जी
Deleteबहुत दिन से तुम्हें देखा नहीं है
ये आँखों के लिए अच्छा नहीं है [किसी शायर ने कहा है ]
बहुत सुंदर
ReplyDeleteहार्दिक आभार
Deleteबहुत खूब जनाब!
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