Friday, 29 January 2021

एक ग़ज़ल-मैंने जो दी है किताबें उन्हें सादा रखना

 

चित्र साभार गूगल

एक ग़ज़ल-

मैंने जो दी है किताबें उन्हें सादा रखना


ख़्वाब मत देखना,और मुझको दिखाना भी नहीं

खुल गयी आँख मेरी नींद अब आना भी नहीं


मैंने जो दी है किताबें उन्हें सादा रखना

मोर के पंख ,कोई फूल सजाना भी नहीं


आँख में कितना है पानी जरा देखूँ उसके

मेरे आने की ख़बर उसको बताना भी नहीं


दिल भी शीशे सा कई टुकड़ों में बिखरा हैं कहीं

अब गले मिलना नहीं हाथ दबाना भी नहीं


बेटियों उड़ती रहो  तेज परिंदो की तरह

कितनी मुश्किल हो ये रफ़्तार घटाना भी नहीं


कवि/शायर जयकृष्ण राय तुषार

चित्र -साभार गूगल 


22 comments:

  1. बहुत सुन्दर

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  2. हर शेर लाजवाब..नायाब ग़ज़ल..

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    Replies
    1. हार्दिक आभार आपका जिज्ञासा जी

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  3. Replies
    1. हार्दिक आभार भाई जितेंद्र जी

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  4. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(३०-०१-२०२१) को 'कुहरा छँटने ही वाला है'(चर्चा अंक-३९६२) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

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  5. बहुत खूब तुषार जी ! बहुत ही प्यारे शेर हैं | भावों की ताजगी और शानदार अंदाजे - बयां लिए हुए | हार्दिक शुभकामनाएं|

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  6. आँख में कितना है पानी जरा देखूँ उसके

    मेरे आने की ख़बर उसको बताना भी नहीं
    बहुत सुन्दर

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  7. बहुत उम्दा शेर हैं ।
    भावनाओं को समेटे।

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  8. जय मां हाटेशवरी.......

    आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
    आप की इस रचना का लिंक भी......
    31/01/2021 रविवार को......
    पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
    शामिल किया गया है.....
    आप भी इस हलचल में. .....
    सादर आमंत्रित है......


    अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
    https://www.halchalwith5links.blogspot.com
    धन्यवाद

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