चित्र साभार गूगल |
एक ग़ज़ल-
मैंने जो दी है किताबें उन्हें सादा रखना
ख़्वाब मत देखना,और मुझको दिखाना भी नहीं
खुल गयी आँख मेरी नींद अब आना भी नहीं
मैंने जो दी है किताबें उन्हें सादा रखना
मोर के पंख ,कोई फूल सजाना भी नहीं
आँख में कितना है पानी जरा देखूँ उसके
मेरे आने की ख़बर उसको बताना भी नहीं
दिल भी शीशे सा कई टुकड़ों में बिखरा हैं कहीं
अब गले मिलना नहीं हाथ दबाना भी नहीं
बेटियों उड़ती रहो तेज परिंदो की तरह
कितनी मुश्किल हो ये रफ़्तार घटाना भी नहीं
कवि/शायर जयकृष्ण राय तुषार
चित्र -साभार गूगल |
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteआपका ह्रदय से आभार सर
Deleteहर शेर लाजवाब..नायाब ग़ज़ल..
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका जिज्ञासा जी
Deleteबेहतरीन।
ReplyDeleteहार्दिक आभार अग्रज जी
Deleteबहुत ख़ूब !
ReplyDeleteहार्दिक आभार भाई जितेंद्र जी
Deleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(३०-०१-२०२१) को 'कुहरा छँटने ही वाला है'(चर्चा अंक-३९६२) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
--
अनीता सैनी
आपका हार्दिक आभार
Deleteबहुत खूब तुषार जी ! बहुत ही प्यारे शेर हैं | भावों की ताजगी और शानदार अंदाजे - बयां लिए हुए | हार्दिक शुभकामनाएं|
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteबहुत बढ़िया।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteआँख में कितना है पानी जरा देखूँ उसके
ReplyDeleteमेरे आने की ख़बर उसको बताना भी नहीं
बहुत सुन्दर
हार्दिक आभार आपका
Deleteबहुत उम्दा शेर हैं ।
ReplyDeleteभावनाओं को समेटे।
हार्दिक आभार आपका
Delete
ReplyDeleteजय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
31/01/2021 रविवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
https://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद
हार्दिक आभार आपका
Deleteसुन्दर सृजन।
ReplyDeleteहार्दिक आभार अदरणीय
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