Monday, 18 January 2021

एक ग़ज़ल-मौसम का सच छिपाती हैं शीशे की खिड़कियाँ

 

चित्र -साभार गूगल 


एक ताजा ग़ज़ल-
मौसम का सच छिपाती हैं शीशे की खिड़कियाँ

मौसम का सच छिपाती हैं शीशे की खिड़कियाँ
हँसकर के सारे ग़म को भुलाती हैं लड़कियाँ

खतरा सभी को रहता है यूँ अपने आस-पास
जब भी कटी उँगलियाँ, तो थीं अपनी खुरपियाँ

मिलती है गालियाँ उन्हें ईनाम कम मिले
सीने में ग़म छिपाये निकलती हैं वर्दियाँ

जो बुझ गए चराग़ उन्हें पूछता है कौन
जलते हुए दियों को बुझाती हैं आँधियाँ

मुश्किल बहुत है सच में पहाड़ों की जिन्दगी
फिर भी सभी के मन को लुभाती हैं वादियाँ

अच्छे भविष्य के लिए माँ डाँटती भी है
बच्चों को सिर्फ़ किस्से सुनाती हैं दादियाँ

कवि शायर-जयकृष्ण राय तुषार
चित्र -साभार गूगल 


17 comments:

  1. अच्छे भविष्य के लिए माँ पीटती भी है
    बच्चों को सिर्फ़ किस्से सुनाती हैं दादियाँ
    बहुत ही उम्दा शेरों से सजी रचना तुषार जी👌👌👌।

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय रेणु जी

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (20-01-2021) को "हो गया क्यों देश ऐसा"  (चर्चा अंक-3952)   पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

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  3. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 20 जनवरी 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. हार्दिक आभार आपका तृप्ति जी

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  4. मौसम का सच छिपाती हैं शीशे की खिड़कियाँ
    हँसकर के सारे ग़म को भुलाती हैं लड़कियाँ

    बहुत खूब !!!
    शानदार ग़ज़ल 🌹🙏🌹

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    1. आदरणीया आपका बहुत बहुत आभार

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  5. बहुत सुन्दर

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  6. मिलती है गालियाँ उन्हें ईनाम कम मिले
    सीने में ग़म छिपाये निकलती हैं वर्दियाँ

    वाह...

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  7. बहुत खूब ...
    हर शेर बहुत कमाल का है ... जुदा बात कहता हुआ ...

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