चित्र -गूगल सर्च इंजन से साभार |
यही रंग है
जो मिलता है
कालिदास की उपमाओं में |
यही रूप है
जिसे ढूंढता हर कवि
अपनी कविताओं में |
फूल सुवासित
होते इससे मौसम
अपना रंग बदलते ,
इसे देखकर
जल लहराता अनगिन
सीपी, शंख निकलते ,
लहरों के संग
सोनमछलियाँ उठतीं -
गिरतीं सरिताओं में |
नीलगगन में
इन्द्रधनुष के रंग
इसी से आये होंगे ,
लोकरंग में
रंगकर कजली
कितने सावन गाये होंगे ,
यही हाथ में
हाथ थामकर
चलता घोर निराशाओं में |
यही रंग है
जिसे उर्वशी और
मेनका ने था पाया ,
यही रंग है
जिसे जायसी ,ग़ालिब
मीर सभी ने गाया ,
बिना अनूदित
सब पढ़ लेते इसको
अनगिन भाषाओँ में |
इसी रंग में
रंगकर कितने राँझे
कितने हीर हो गए ,
इसकी लौ में
जलकर कितने
पंडित और फकीर हो गए ,
कई बार हम
इसी रंग के कारण
पड़ते दुविधाओं में |
सी रंग में
ReplyDeleteरंगकर कितने राँझे
कितने हीर हो गए ,
इसकी लौ में
जलकर कितने
पंडित और फकीर हो गए ,
कई बार हम
इसी रंग के कारण
पड़ते दुविधाओं में |
क्या बात है ,प्रेम तो दूर है बहु विषादों से परिभाषाओं से , साथ हैं तो अनुभूतियाँ ........ आभार जी
नीलगगन में
ReplyDeleteइन्द्रधनुष के रंग
इसी से आये होंगे ,
लोकरंग में
रंगकर कजली
कितने सावन गाये होंगे ,
यही हाथ में
हाथ थामकर
चलता घोर निराशाओं में |
Harek shabd,harek pankti sundar hai!
नीलगगन में
ReplyDeleteइन्द्रधनुष के रंग
इसी से आये होंगे ,
लोकरंग में
रंगकर कजली
कितने सावन गाये होंगे ,
यही हाथ में
हाथ थामकर
चलता घोर निराशाओं में |
Beautiful expression , Tushaar ji .
.
ताज़ा बिम्बों-प्रतीकों-संकेतों से युक्त आपकी भाषा अभिव्यक्ति का माध्यम भर नहीं, हमारे मन की तहों में झांकने वाली आंख है। इस कविता का काव्य-शिल्प हमें सहज ही आपकी भाव-भूमि के साथ जोड़ लेता है। रंगों से भरे चित्रात्मक वर्णन पूरी तरह से बांधे रखता है।
ReplyDeleteबहुत ही शानदार प्रेमगीत है, बधाई स्वीकार कीजिए। पहले अंतरे में फुल को फूल कर लीजिए।
ReplyDeleteभाई धर्मेन्द्र जी त्रुटि /टाइपिंग मिस्टेक की और ध्यान दिलाने के लिए धन्यवाद |
ReplyDeleteसुन्दर अनुभूति .
ReplyDeleteअद्भुत शब्द-श्रंगार।
ReplyDeleteadhbut abhvaykti....
ReplyDeleteनीलगगन में
ReplyDeleteइन्द्रधनुष के रंग
इसी से आये होंगे
लोकरंग में
रंगकर कजली
कितने सावन गाये होंगे
यही हाथ में
हाथ थामकर
चलता घोर निराशाओं में ।
अहा.., कितना सुंदर गीत है।
मन झूम-झूम उठा।
गहरे भाव और अभिव्यक्ति के साथ बहुत ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने! बधाई!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना ..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गीत....
ReplyDeleteऐसा सुन्दर
गीत गढा है,
ह्रदय का
आनंद बढ़ा है
झूल रहां हूँ
जैसे झूला
भावों की सुगढ़ लताओं में...
सादर...
tushar ji, kya rang chhalkaya hai? ham sabko sarabor kar diya . bahutkhoob!bahutsundar!
ReplyDeleteखूबसूरत अहसासों को पिरोती हुई एक सुंदर रचना. आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
सच कहा ये प्रेम का रंग है ... हर प्रेमी में मिलता है ... मज़ा आया पढ़ के ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना !
ReplyDeleteआप सभी ने इस गीत को पसंद किया इसके लिए आभार |
ReplyDeleteआप सभी ने इस गीत को पसंद किया इसके लिए आभार |
ReplyDeleteआप सभी ने इस गीत को पसंद किया इसके लिए आभार |
ReplyDeleteअनगिन भाष्यें बस समझी जाती है .बहुत ही खुबसूरत , मनभावन कविता है . बहुत अच्छी लगी.
ReplyDeleteवाह!...बहुत ख़ूब
ReplyDeleteइसी रंग में
ReplyDeleteरंगकर कितने राँझे
कितने हीर हो गए ,
इसकी लौ में
जलकर कितने
पंडित और फकीर हो गए ,
खूब ..बेहतरीन शाब्दिक अलंकरण लिए रचना ....
सिर्फ चित्रों से ही हुआ है...तो कोई बात नहीं...वैसे भाव बहुत गहरे से निकले हैं...
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
ReplyDeletehttp://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
इसकी लौ में
ReplyDeleteजलकर कितने
पंडित और फ़कीर हो गए '
........वाह तुषार जी ......बहुत प्यारा गीत
क्या बात है ......
ReplyDeleteexcelent work done Mr. Tusharji
ReplyDeleteGeet aur gazal dono hi bahut achi lagi.
Very beautiful poem....har bhaav aankhon ke saamne tha.bahut khoob.
ReplyDeleteAnd I like your blog too..very well organized.
Regards,
Shaifali
http://guptashaifali.blogspot.com