Saturday, 23 July 2011

प्रेम गीत -यही रंग है

चित्र -गूगल सर्च इंजन से साभार 
यही रंग है -एक प्रेम गीत 

यही रंग है 
जो मिलता है 
कालिदास की उपमाओं में |
यही रूप है 
जिसे ढूंढता हर कवि 
अपनी कविताओं में |

फूल  सुवासित 
होते इससे मौसम 
अपना रंग बदलते ,
इसे देखकर 
जल लहराता अनगिन 
सीपी, शंख निकलते ,
लहरों के संग 
सोनमछलियाँ उठतीं -
गिरतीं सरिताओं में |

नीलगगन में 
इन्द्रधनुष के रंग 
इसी से आये होंगे ,
लोकरंग में 
रंगकर कजली 
कितने सावन गाये होंगे ,
यही हाथ में 
हाथ थामकर 
चलता घोर निराशाओं में |

यही रंग है 
जिसे उर्वशी और 
मेनका ने था पाया ,
यही रंग है 
जिसे जायसी ,ग़ालिब 
मीर सभी ने गाया ,
बिना अनूदित 
सब पढ़ लेते इसको 
अनगिन भाषाओँ में |

इसी रंग में 
रंगकर कितने राँझे 
कितने हीर हो गए ,
इसकी लौ में 
जलकर कितने 
पंडित और फकीर हो गए ,
कई बार हम 
इसी रंग के कारण 
पड़ते दुविधाओं में |
चित्र -गूगल से साभार 
[इन चित्रों से ही इस गीत का सृजन हुआ ]

29 comments:

  1. सी रंग में
    रंगकर कितने राँझे
    कितने हीर हो गए ,
    इसकी लौ में
    जलकर कितने
    पंडित और फकीर हो गए ,
    कई बार हम
    इसी रंग के कारण
    पड़ते दुविधाओं में |
    क्या बात है ,प्रेम तो दूर है बहु विषादों से परिभाषाओं से , साथ हैं तो अनुभूतियाँ ........ आभार जी

    ReplyDelete
  2. नीलगगन में
    इन्द्रधनुष के रंग
    इसी से आये होंगे ,
    लोकरंग में
    रंगकर कजली
    कितने सावन गाये होंगे ,
    यही हाथ में
    हाथ थामकर
    चलता घोर निराशाओं में |
    Harek shabd,harek pankti sundar hai!

    ReplyDelete
  3. नीलगगन में
    इन्द्रधनुष के रंग
    इसी से आये होंगे ,
    लोकरंग में
    रंगकर कजली
    कितने सावन गाये होंगे ,
    यही हाथ में
    हाथ थामकर
    चलता घोर निराशाओं में |

    Beautiful expression , Tushaar ji .

    .

    ReplyDelete
  4. ताज़ा बिम्बों-प्रतीकों-संकेतों से युक्त आपकी भाषा अभिव्यक्ति का माध्यम भर नहीं, हमारे मन की तहों में झांकने वाली आंख है। इस कविता का काव्य-शिल्प हमें सहज ही आपकी भाव-भूमि के साथ जोड़ लेता है। रंगों से भरे चित्रात्मक वर्णन पूरी तरह से बांधे रखता है।

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  5. बहुत ही शानदार प्रेमगीत है, बधाई स्वीकार कीजिए। पहले अंतरे में फुल को फूल कर लीजिए।

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  6. भाई धर्मेन्द्र जी त्रुटि /टाइपिंग मिस्टेक की और ध्यान दिलाने के लिए धन्यवाद |

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  7. सुन्दर अनुभूति .

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  8. अद्भुत शब्द-श्रंगार।

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  9. नीलगगन में
    इन्द्रधनुष के रंग
    इसी से आये होंगे
    लोकरंग में
    रंगकर कजली
    कितने सावन गाये होंगे
    यही हाथ में
    हाथ थामकर
    चलता घोर निराशाओं में ।

    अहा.., कितना सुंदर गीत है।
    मन झूम-झूम उठा।

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  10. गहरे भाव और अभिव्यक्ति के साथ बहुत ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने! बधाई!

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  11. बहुत सुन्दर गीत....

    ऐसा सुन्दर
    गीत गढा है,
    ह्रदय का
    आनंद बढ़ा है
    झूल रहां हूँ
    जैसे झूला
    भावों की सुगढ़ लताओं में...

    सादर...

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  12. tushar ji, kya rang chhalkaya hai? ham sabko sarabor kar diya . bahutkhoob!bahutsundar!

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  13. खूबसूरत अहसासों को पिरोती हुई एक सुंदर रचना. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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  14. सच कहा ये प्रेम का रंग है ... हर प्रेमी में मिलता है ... मज़ा आया पढ़ के ...

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  15. बहुत सुन्दर रचना !

    ReplyDelete
  16. आप सभी ने इस गीत को पसंद किया इसके लिए आभार |

    ReplyDelete
  17. आप सभी ने इस गीत को पसंद किया इसके लिए आभार |

    ReplyDelete
  18. आप सभी ने इस गीत को पसंद किया इसके लिए आभार |

    ReplyDelete
  19. अनगिन भाष्यें बस समझी जाती है .बहुत ही खुबसूरत , मनभावन कविता है . बहुत अच्छी लगी.

    ReplyDelete
  20. वाह!...बहुत ख़ूब

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  21. इसी रंग में
    रंगकर कितने राँझे
    कितने हीर हो गए ,
    इसकी लौ में
    जलकर कितने
    पंडित और फकीर हो गए ,

    खूब ..बेहतरीन शाब्दिक अलंकरण लिए रचना ....

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  22. सिर्फ चित्रों से ही हुआ है...तो कोई बात नहीं...वैसे भाव बहुत गहरे से निकले हैं...

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  23. मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

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  24. इसकी लौ में
    जलकर कितने
    पंडित और फ़कीर हो गए '
    ........वाह तुषार जी ......बहुत प्यारा गीत

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  25. excelent work done Mr. Tusharji
    Geet aur gazal dono hi bahut achi lagi.

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  26. Very beautiful poem....har bhaav aankhon ke saamne tha.bahut khoob.

    And I like your blog too..very well organized.

    Regards,
    Shaifali
    http://guptashaifali.blogspot.com

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