चित्र साभार गूगल |
एक सामयिक गीत -
बीत गयी
शाम, मौन
वंशी का स्वर.
फूलों के
वन टूटे
तितली के पर.
राग -रंग
गीत वही
मौसम ही बदले,
झील -ताल
सारस हैं
पंख लिए उजले,
कहकहे
नहीं बाकी
सजे हुए घर.
कदम -कदम
सौदे हैं
निष्ठुर बाज़ार,
उपहारों में
उलझा
राँझे का प्यार,
चलो कहीं
निर्जन में
हँस लें जी भर.
आओ फिर
स्वर दें
कुछ जोश भरे गीतों को,
फिर से
कुछ पत्र लिखें
बिछड़ गए मीतों को,
पटना, दिल्ली
काशी
या हो बस्तर.
कवि जयकृष्ण राय तुषार
चित्र साभार गूगल |
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