Thursday, 9 February 2023

एक ग़ज़ल -सुनहरे ख़्वाब लेकर

चित्र साभार गूगल 
एक ग़ज़ल -सुनहरे ख़्वाब लेकर

सुनहरे ख़्वाब लेकर नींद में रहता तो अच्छा था
जो देखा था ज़माने से नहीं कहता तो अच्छा था 

बहुत मुश्किल में जीते हैं परिंदे फूल, जंगल के
इन्ही के दरमियाँ झरना कोई बहता तो अच्छा था

शहर के दोस्त, रिश्ते बस जरूरत के मुताबिक हैं
मैं अपने गाँव के माहौल में रहता तो अच्छा था

मेरी छत पर उतर आया था कोई चाँद आहिस्ता
मगर बरसात का मौसम नहीं रहता तो अच्छा था 

बगावत करके मैं भी आ गया उसके निशाने पर
जुबां को सिल के उसके ज़ुर्म को सहता तो अच्छा था

हमारी ख्वाहिशें भी हो गयीं ऊँची हिमालय से
मेरे एहसास का पर्वत नही ढहता तो अच्छा था

कहाँ अब हैँ पुराने लोग जो ठुमरी समझते हैँ
मैं दिल की बात महफ़िल में नहीं कहता तो अच्छा था 

जयकृष्ण राय तुषार 


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