चित्र साभार गूगल |
एक गीत -एक चिड़िया शाख पर गाती हुई
एक चिड़िया
शाख पर गाती हुई
इस शहर की चुप्पियों को तोड़ती है.
भूख से व्याकुल
मगर संगीतमय है,
साधना के साथ
भाषा, अर्थ -लय है,
नींड़ के निर्माण का
सपना लिए
नींद में भी रोज तिनका जोड़ती है.
नहीं छुट्टी है नहीं
इतवार कोई,
नाव बिन माँझी
नहीं पतवार कोई,
इस नदी की
आरती मत छोड़ना
आस्था के साथ रिश्ते जोड़ती है.
घास धानी, हरी
मौसम फूल के,
पाँव में निखरे
महावर धूल के,
रास्ते लम्बे पथिक
विश्राम कर
प्यास भी पगडंडियो को मोड़ती है.
खिलखिलाकर
धूप -बादल हँस रहे,
घने वन में दौड़
चीतल फँस रहे,
शीश पर मटका
दिये भी जल रहे
एक बंजारन कला कब छोड़ती है.
कवि -जयकृष्ण राय तुषार
चित्र साभार गूगल |
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