प्रभु श्रीराम |
एक लोकभाषा गीत -जब तक रही राम कै दुनिया तुलसी के ही गाई
जन -जन कै प्रेरणा पुंज हौ
तुलसी कै चौपाई.
जब तक रही राम कै दुनिया
तुलसी के ही गाई.
रामचरित मानस के समझै
जन -जन इहै सुभीता,
बाल्मीकि कै रामायन ई
वेदव्यास कै गीता,
नर किन्नर, जनजाति पक्षिगन
सबै राम कै साथी
वनवासी प्रभु राम खड़ाऊं
और न घोड़ा, हाथी
असुर समझिहैँ का तुलसी के
राजनीति हरजाई.
सहज सुघर भाषा, बोली में
हौ तुलसी कै बानी,
सबके मन में ज्योति जगावै
का ज्ञानी -अज्ञानी
मात -पिता गुरु -पुत्र भार्या
राजधर्म कै दर्शन
श्लोक, छंद चौपाई के संग
मंगल लोक सुदर्शन,
तुलसी पर संदेह करी जे
चारो युग पछताई.
श्रृंवेरपुर चित्रकूट से
पंचवटी तक गइलैं
जउने डगर राम कै पनही
वोही डगर के धइ लैं
केवट कै संवाद मनोहर
तुलसी बाबा गावैँ
संकटमोचन से बस
अपने मन कै मरम बतावैँ
जेकरे मन में बसी अयोध्या
ऊ तुलसी के पाई.
तुलसी से हनुमान रूद्र कै
भक्ति भाव कै नाता
तुलसी हउवैँ सत्य -सनातन
संस्कृति कै उदगाता
जाति -पंथ कै भेद न कइलै
सबके राह देखउलैं
तुलसी तौ बस राम क महिमा
सच्चे मन से गउलैं
सीता के संग शबरी, सरयू
पावन गंगा माई.
कवि जयकृष्ण राय तुषार
गोस्वामी तुलसीदास |
No comments:
Post a Comment
आपकी टिप्पणी हमारा मार्गदर्शन करेगी। टिप्पणी के लिए धन्यवाद |