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प्रभु श्रीराम |
एक ग़ज़ल --
कोई मौसम कहाँ सूरज को बुझा देता है
शांत मौसम में हरा पेड़ गिरा देता है
ये वही जाने किसे, कौन सज़ा देता है
सब उजाले में शहँशाह समझते खुद को
रात में नींद में इक ख़्वाब डरा देता है
उसका घर वैसा ही है जैसा बना है मेरा
आदतन फिर भी वो शोलों को हवा देता है
बुझ गए जब भी दिए दोष हवाओं का रहा
कोई मौसम कहाँ सूरज को बुझा देता है
स्वर्ण की जलती हुई लंका ही मिलती है उसे
राम को जब कोई हैवान भुला देता है
कवि -शायर जयकृष्ण राय तुषार