Thursday, 13 March 2025

एक पुराना होली गीत. अबकी होली में

  



चित्र -गूगल से साभार 

आप सभी को होली की बधाई एवं शुभकामनाएँ 
एक गीत -होली 

आम कुतरते हुए सुए से 
मैना कहे मुंडेर की |
अबकी होली में ले आना 
भुजिया बीकानेर की |

गोकुल ,वृन्दावन की हो 
या होली हो बरसाने की ,
परदेसी की वही पुरानी
आदत  है तरसाने की ,
उसकी आँखों को भाती है 
कठपुतली आमेर की |

इस होली में हरे पेड़ की 
शाख न कोई टूटे ,
मिलें गले से गले 
पकड़कर हाथ न कोई छूटे ,
हर घर -आंगन महके खुशबू 
गुड़हल और कनेर की |

चौपालों पर ढोल मजीरे 
सुर गूंजे करताल के ,
रुमालों से छूट न पायें 
रंग गुलाबी गाल के ,
फगुआ गाएं या फिर 
बांचेंगे कविता शमशेर की |

कवि जयकृष्ण राय तुषार
[मेरे इस गीत को आदरणीय अरुण आदित्य द्वारा अमर उजाला में प्रकाशित किया गया था मेरे संग्रह में भी है |व्यस्ततावश नया लिखना नहीं हो पा रहा है |

चित्र -गूगल से साभार 

Sunday, 23 February 2025

एक पुराना गीत -यह ज़रा सी बात

 

चित्र -गूगल से साभार 
एक गीत -यह जरा सी बात 
फिर गुलाबी 
धूप -तीखे 
मोड़ पर मिलने लगी है |
यह 
जरा सी बात पूरे 
शहर को खलने लगी है |

रेशमी 
जूड़े बिखर कर 
गाल पर सोने लगे हैं ,
गुनगुने 
जल एड़ियों को 
रगड़कर धोने लगे हैं ,
बिना माचिस 
के प्रणय की 
आग फिर जलने लगी है |

खेत में 
पीताम्बरा सरसों 
तितलियों को बुलाये ,
फूल पर 
बैठा हुआ भौंरा 
रफ़ी के गीत गाये ,
सुबह -
उठकर, हलद -
चन्दन देह पर मलने लगी है |

हवा में 
हर फूल की 
खुशबू इतर सी लग रही है ,
मिलन में 
बाधा अबोली 
खिलखिलाकर जग रही है ,
विवश होकर 
डायरी पर 
फिर कलम चलने लगी है |

कुछ हुआ है 
ख़्वाब दिन में 
ही हमें आने लगे हैं ,
पेड़ पर 
बैठे परिन्दे 
जोर से गाने लगे हैं ,
सुरमई 
सी शाम 
अब कुछ देर से ढलने लगी है |
चित्र साभार गूगल 

चित्र -गूगल से साभार 

Monday, 17 February 2025

एक गीत-दिल्ली में यमुना का उत्सव

 

चित्र साभार गूगल 



एक गीत -दिल्ली में यमुना का उत्सव 

दिल्ली में यमुना की सफाई पर नई सरकार की पहल सराहनीय है. देश की नदियाँ हमारे पर्व उत्सव और जीवन को उल्लासमय बनाती हैं. सभी नदियों को सम्मान और आदर देना होगा तभी सृष्टि बचेगी.


दिल्ली में 

यमुना के जल में 

शंख बजाते लोग.

कालिंदी की 

मुक्ति के लिए 

मन्त्र सुनाते लोग.


इंसानों की 

बस्ती जल में 

गाद भर गयी है,

कृष्ण प्रिया की 

रोते -रोते 

आँख भर गयी है,

पंडित के 

संग फिर पूजा की 

थाल सजाते लोग.


नदियाँ अगर 

मृत हुईं 

उत्सव कहाँ मनाएंगे,

किसके 

तट पर व्यास 

भागवत कथा सुनाएंगे,

द्वापर जैसा 

यमुना जल में 

कहाँ नहाते लोग.


मगरमच्छ मत 

बनिए, बनिए 

भक्त भगीरथ सा, 

हर सरिता का 

घाट सजे फिर 

पावन तीरथ सा,

कंस मरा 

फिर यमुना तट पर 

फूल चढ़ाते लोग.


हरी दूब के 

दिन फिर लौटे 

प्रातः वंदन है,

एक उपेक्षित 

माँ का घर में फिर 

अभिनंदन है,

संध्याओं को 

लहर -लहर पर 

दीप जलाते लोग.


कवि -जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल 


Wednesday, 12 February 2025

एक प्रेमगीत -उसकी यादों में मैं गीत सुनाता हूँ

 

चित्र साभार गूगल 

आप सभी का दिन शुभ हो 

एक प्रेम गीत -उसकी यादों में मैं गीत सुनाता हूँ 


आसपास है कोई 

जिसको ख़बर नहीं 

उसकी यादों में 

मैं गीत सुनाता हूँ.


हँसी होंठ पर और 

आँख में पानी है,

मौसम भी ये गीतों 

भरी कहानी है,

तितली, फूल, पतंगे, 

बारिश में जुगनू 

मैं अपनी कविता में 

यही सजाता हूँ.


मुझे देख रुपसियों ने 

श्रृंगार किया,

मैं दरपन था मुझसे 

किसने प्यार किया,

मिटी नहीं तसवीर 

सुनहरी यादों की 

मैं अलिखित पत्रों में 

फूल सजाता हूँ.


यात्राओं में मिला 

मगर संवाद नहीं,

इंद्रधनुष को 

बंज़रपन की याद नहीं,

नये नये चंदन वन 

की ये खुशबू है 

मैं खुशबू के साथ 

नहीं उड़ पाता हूँ.


हर मौसम में देखे 

नदियों की धारा,

सामवेद कैसे गाता 

मैं बंजारा,

वीणा संग मृदंग और 

कुछ मादल भी 

वंशी लेकर वृन्दावन 

तक जाता हूँ.

चित्र साभार गूगल 
कवि जयकृष्ण राय तुषार 


Tuesday, 11 February 2025

कुम्भ गीत -माथ -माथ चंदन है

 

चित्र साभार गूगल 

एक ताज़ा गीत -गंगा सा निर्मल मन 

गंगा सा 

निर्मल मन 

माथ -माथ चंदन है.

संगम की 

रेती में 

सबका अभिनन्दन है.


थके -थके 

पाँव मगर 

मन में उत्साह प्रबल,

महाकुम्भ 

दर्शन को 

आतुर है विश्व सकल,

मणिपुर-

केरल,काशी, 

पेरिस औ लंदन है.


कालिंदी 

गंगा का सुखद 

मिलन बिंदु यही,

भक्तों की 

आस्था का 

एक महासिंधु यही,

संत और 

अखाड़ों का 

यहाँ वहाँ वंदन है.


ब्रह्मा की 

यज्ञ भूमि 

तीर्थराज कहते हैं,

द्वादश माधव 

इसमें रक्षक 

बन रहते हैं,

यह तो 

रविदास की 

कठौती का कँगन है.


कवि 

जयकृष्ण राय तुषार


Thursday, 23 January 2025

मेरे कुम्भ गीत का अलबम रिलीज




यह प्रयाग कुम्भ गीत का अलबम रिलीज 

मैंने 2001 में महाकुम्भ इस गीत का सृजन किया था रेडिओ कलाकारों के साथ कुछ स्थानीय गायकों द्वारा इसे स्वर दिया गया. लेकिन मेरी शुभचिंतक श्रीमती दीप्ती चतुर्वेदी जी ने कमाल कर दिया. विख्यात भजन गायक पद्मश्री श्री अनूप जलोटा जी के साथ गाकर मेरे गीत को अमर कर दिया. संगीत भाई श्री विवेक प्रकाश जी का है. इसे red ribbon musik ने रिलीज किया है. यह मेरे लिए सुखद और शानदार अनुभव है. भजन सम्राट श्री अनूप जलोटा, मेरे लिए परम आदरणीया श्रीमती दीप्ती चतुर्वेदी एवं भाई श्री विवेक प्रकाश के प्रति एवं red ribbon musik के प्रति मैं हृदय से आभारी हूँ. आप सभी इस महाकुम्भ गीत को सुनें और आशीष प्रदान करें. जय तीर्थराज प्रयाग. जय गंगा, जमुना सरस्वती मैया. जयहनुमान जी 

श्री विवेक प्रकाश पद्मश्री श्री अनूप जलोटा जी एवं गायिका श्रीमती दीप्ती चतुर्वेदी जी 

श्री अनूप जलोटा जी श्रीमती दीप्ती चतुर्वेदी जी एवं श्री विवेक प्रकाश जी 

दैनिक भाष्कर 




यह प्रयाग है यहाँ धर्म की ध्वजा निकलती है 
प्रयाग में [इलाहाबाद में धरती का सबसे बड़ा शांतिपूर्ण अध्यात्मिक मेला लगता है चाहे वह नियमित माघ मेला हो अर्धकुम्भ या फिर बारह वर्षो बाद लगने वाला महाकुम्भ हो |इस गीत की रचना मैंने २००१ के महाकुम्भ में किया था और इसे जुना पीठाधीश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरी जी महाराज को भेंट किया था |
आप सभी के लिए सादर 


यह प्रयाग है 

यह प्रयाग है 
यहाँ धर्म की ध्वजा निकलती है 
यमुना आकर यहीं 
बहन गंगा से मिलती है 
इसके पीछे राजा चलता
रानी चलती है।

महाकुम्भ का योग
यहां वर्षों पर बनता है
गंगा केवल नदी नहीं
यह सृष्टि नियंता है
यमुना जल में, सरस्वती
वाणी में मिलती है।

यहां कुमारिल भट्ट
हर्ष का वर्णन मिलता है
अक्षयवट में धर्म-मोक्ष का
दीपक जलता है
घोर पाप की यहीं
पुण्य में शक्ल बदलती है।

रचे-बसे हनुमान
यहां जन-जन के प्राणों में
नागवासुकी का भी वर्णन
मिले पुराणों में
यहां शंख को स्वर
संतों को ऊर्जा मिलती है।

यहां अलोपी, झूंसी,
भैरव, ललिता माता हैं
मां कल्याणी भी भक्तों की
भाग्य विधाता हैं
मनकामेश्वर मन की
सुप्त कमलिनी खिलती है।

स्वतंत्रता, साहित्य यहीं से
अलख, जगाते हैं
लौकिक प्राणी यही
अलौकिक दर्शन पाते हैं
कल्पवास में यहां
ब्रह्म की छाया मिलती है।

कवि -जयकृष्ण राय तुषार 
प्रयागराज 
पीठाधीश्वर जूना अखाड़ा स्वामी श्री अवधेशानन्द गिरी जी महाराज के श्रीचरणों में सादर समर्पित

Wednesday, 8 January 2025

एक ग़ज़ल -अपनी ग़ज़ल के साथ

 

चित्र साभार गूगल 

दस्तक न दो किवाड़ पे , खुशबू कमल के साथ 

मशरूफ़ हूँ मैं इन दिनों अपनी ग़ज़ल के साथ


अब चाँदनी का अक्स निहारुँ क्या झील में 

मौसम की जंग में हूँ मैं अपनी फसल के साथ 


कुछ दिन जियेंगे लोग गलतफहमियों के संग 

फिर आ गया है गाँव में कोई रमल के साथ 


दरिया के पानियों पे नज़ारे हसीन हैं 

कैसे परिंदे चोंच लड़ाते हैं जल के साथ 


धरती से लोकरंग मिटाने की ज़िद न कर 

जिन्दा रहें ये रंग जरुरी बदल के साथ 

कवि /शायर 

जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल 


एक ग़ज़ल -फूलों का हार दे

 

चित्र साभार गूगल 

एक ताज़ा ग़ज़ल 


पर्वत, नदी, दरख़्त, तितलियों को प्यार दे 

अपनी हवस को छोड़ ये मौसम संवार दे 


इतना ग़रीब हूँ कि इक तस्वीर तक नहीं 

सपनों में आके माँ कभी मुझको पुकार दे 


मुझको भी तैरना है परिंदो के साथ में 

संगम के बीच माँझी तू मुझको उतार दे 


झूले पे मैं झुलाऊँगा राधा जू स्याम को 

चन्दन की काष्ठ, भक्ति से गढ़के सुतार दे 


दुनिया की असलियत को परखना ही है अगर 

ए दोस्त मोह माया का चश्मा उतार दे 


काशी में तुलसीदास या मगहर में हों कबीर

दोनों ही सिद्ध संत हैं दोनों को प्यार दे 


जिस कवि के दिल में राष्ट्र हो वाणी में प्रेरणा 

उस कवि को यह समाज भी फूलों का हार दे 


कवि /शायर 

जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल 


Sunday, 22 December 2024

एक ग़ज़ल -ख़्वाब किसने भर दिया

 

ग़ज़ल 

चित्र साभार गूगल 

एक ग़ज़ल -

जब कभी थककर के लौटा गोद में सर धर दिया 

माँ ने अपने जादुई हाथों से चंगा कर दिया 


फूल, खुशबू, तितलियाँ, नदियाँ, परी सब रंग थे 

नींद में आँखों में ऐसा ख़्वाब किसने भर दिया 


मौन रहकर भी किसी के दिल का किस्सा पढ़ लिए 

आँखों से आँखों को उसने सब इशारा कर दिया 


बर्फबारी, अग्निवर्षा, धूप, ओले, आधियाँ 

मौसमों ने बस हरे पेड़ों को सारा डर दिया 


नर्मदा, गिरिनार, सिद्धाश्रम है संतों की जगह 

जिसको जैसी है जरूरत उसको वैसा घर दिया 


जो भी माँगा दे दिए परिणाम की चिंता न थी 

देवताओं ने हमेशा राक्षसों को वर दिया 


पाँव हिरणों को मछलियों को नदी का जल दिया 

आसमाँ छूना था जिसको बस उसी को पर दिया 


बांसुरी और शंख होठों पर सजाकर देखिए 

वक़्त ने बेज़ान चीजों को भी मीठा स्वर दिया 


कवि /शायर 

जयकृष्ण राय तुषार 

चित्र साभार गूगल 



Wednesday, 18 December 2024

कुछ सामयिक दोहे


कुछ सामयिक दोहे 

चित्र साभार गूगल 



मौसम के बदलाव का कुहरा है सन्देश 

सूरज भी जाने लगा जाड़े में परदेश 


हिरनी आँखों में रहें रोज सुनहरे ख़्वाब 

सबके मन उपवन रहें खुशबू और गुलाब 


कोई भी अपना नहीं दुनिया माया जाल 

ख़्वाब कमल के देखता दिनभर सूखा ताल 


जिससे मन की बात हो वह ही सबसे दूर 

आओ मन फिर से पढ़ें तुलसी, मीरा, सूर 


कुछ क्षण ही आकाश में चाँद, चाँदनी, नूर 

सुख के दिन उड़ते रहे जैसे खुले कपूर 


फिर से जगमग हो गए गंगा -यमुना तीर 

घाटों पर जलते दिए खुशबू लिए समीर 


महिमा गाते कुम्भ की सारे वेद -पुरान 

तीर्थराज में कीजिए दान और स्नान 


राम मिलेंगे आपको बनिए खुद हनुमान 

भक्तों के आधीन हैं देव और भगवान 


सबसे हाथ मिलाइये सबसे करिए प्यार 

बुलडोज़र से टूटता नफ़रत का बाजार 


कुहरे से डरिये नहीं इसके बाद वसंत 

मिलते हैं मधुमास में सुंदर फूल अनंत


इस चिड़िया को याद है हर मौसम का गीत 

अधरों में जैसे छुपा वंशी का संगीत


चित्र साभार गूगल 
कवि जयकृष्ण राय तुषार 


एक पुराना होली गीत. अबकी होली में

   चित्र -गूगल से साभार  आप सभी को होली की बधाई एवं शुभकामनाएँ  एक गीत -होली  आम कुतरते हुए सुए से  मैना कहे मुंडेर की | अबकी होली में ले आन...