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चित्र साभार गूगल |
एक गीत -मोरपँखी गीत
इस मारुस्थल में
चलो ढूँढ़े
नदी को मीत.
डायरी में
लिखेंगे
कुछ मोरपँखी गीत.
रेत में
पदचिन्ह होंगे
या मिटे होंगे,
बेर से
लड़कर
हरे पत्ते फटे होंगे,
फूल के
ऊपर लिखेंगे
तितलियों की जीत.
घाटियों में
रंग होंगे
हरापन होगा,
जहाँ तुम
होगी वहाँ
कुछ नयापन होगा,
इन परिंदो
के यहाँ
होगा सुगम संगीत.
आदिवासी
घाटियों में
रंग सारे हैं,
अतिथि
स्वागत में
सभी बाहें पसारे हैं,
गा रहा होगा
पहाड़ी धुन
कोई जगजीत.
कवि जयकृष्ण राय तुषार
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चित्र साभार गूगल |
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 21 अगस्त 2025 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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आपका हृदय से आभार. सादर अभिवादन
Deleteवाह! तुषार जी ,बहुत सुंदर ।
ReplyDeleteआपका हृदय से आभार. सादर अभिवादन
Deleteबहुत सुंदर गीत
ReplyDeleteआपका हृदय से आभार. सादर अभिवादन
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