Monday, 23 August 2021

एक गीत-रख गया मौसम सुबह अंगार फूलों पर

 


एक गीत-रख गया मौसम सुबह अंगार फूलों पर


रख गया

मौसम 

सुबह अंगार फूलों पर ।


वक्त पर

लम्बे-घने

तरु भी हुए बौने,

रेत 

नदियों में

पियासे खड़े मृगछौने,

ताक में

अजगर

शिकारी नदी कूलों पर ।


सूर्य भी

छिपने लगा 

है बादलों के घर,

हो गए हैं

सभ्यता के

आज कातर स्वर,

घोसलों पर,

चील के 

कब्जे बबूलों पर ।


हो गयी

दुनिया तमाशा

वक्त भी बुज़दिल,

अब अहिंसा से

विजय का

पथ हुआ मुश्किल,

इस सदी में

कौन कायम

है उसूलों पर ।

कवि जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल


15 comments:

  1. बेहतरीन गीत आदरणीय।

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    1. हार्दिक आभार आपका आदरणीया अनु जी

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  2. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (25-08-2021) को चर्चा मंच   "विज्ञापन में नारी?"  (चर्चा अंक 4167)  पर भी होगी!--सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।--
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'   

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  3. बहुत सुंदर! सारगर्भित सत्य आज का।

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  4. वर्तमान हालातों पर सुंदर रचना

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  5. सच में आज घाल-मेल ऐसा हो गया है कि कुछ समझ नहीं आता । सुन्दर रचना ।

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  6. आज के संदर्भ को परिभाषित करती सुंदर रचना ।

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