एक गीत-रख गया मौसम सुबह अंगार फूलों पर
रख गया
मौसम
सुबह अंगार फूलों पर ।
वक्त पर
लम्बे-घने
तरु भी हुए बौने,
रेत
नदियों में
पियासे खड़े मृगछौने,
ताक में
अजगर
शिकारी नदी कूलों पर ।
सूर्य भी
छिपने लगा
है बादलों के घर,
हो गए हैं
सभ्यता के
आज कातर स्वर,
घोसलों पर,
चील के
कब्जे बबूलों पर ।
हो गयी
दुनिया तमाशा
वक्त भी बुज़दिल,
अब अहिंसा से
विजय का
पथ हुआ मुश्किल,
इस सदी में
कौन कायम
है उसूलों पर ।
कवि जयकृष्ण राय तुषार
चित्र साभार गूगल |
बेहतरीन गीत आदरणीय।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका आदरणीया अनु जी
Deleteआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (25-08-2021) को चर्चा मंच "विज्ञापन में नारी?" (चर्चा अंक 4167) पर भी होगी!--सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।--
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हार्दिक आभार आपका
Deleteबहुत सुंदर! सारगर्भित सत्य आज का।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteहार्दिक आभार आपका
Deleteवर्तमान हालातों पर सुंदर रचना
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteहार्दिक आभार आपका
Deleteसच में आज घाल-मेल ऐसा हो गया है कि कुछ समझ नहीं आता । सुन्दर रचना ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteहार्दिक आभार आपका
Deleteआज के संदर्भ को परिभाषित करती सुंदर रचना ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
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