देशगान-फिर शांति अचंभित,विस्मित है
जागो भारत के
भरतपुत्र
सरहद पर कर दो शंखनाद ।
फिर शांति
अचम्भित, विस्मित है
फिर मानवता के घर विषाद ।
हो गयी
अहिंसा खण्ड-खण्ड
हे बामियान के बुद्ध देख,
स्त्री,बच्चों
लाचारों से
अब कापुरुषों का युद्ध देख,
बन शुंग,शिवाजी
गोविन्द सिंह,रण में
दाहिर को करो याद ।
बीजिंग,लाहौर
कराची का फिर
आँख मिचौनी खेल शुरू,
घर में सोए
गद्दारों का
षणयंत्र शत्रु से मेल शुरू,
इस बार
शत्रु का नाम मिटा
हो अंतरिक्ष तक सिंहनाद।
वीटो वाले
दुबके घर में
इनको पसंद कोलाहल है,
नेतृत्व बने
अब महाकाल
दुनिया विष उदधि हलाहल है,
असुरों पर
फेंकों अब त्रिशूल
ताण्डव हो डमरू का निनाद ।
कवि-जयकृष्ण राय तुषार
सभी चित्र साभार गूगल |
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (24-8-21) को "कटु यथार्थ"(चर्चा अंक 4166) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
पुरुषार्थ का आह्वान करती हुयी पंक्तियाँ।
ReplyDeleteसादर प्रणाम आदरणीय।आपका हृदय से आभार
Deleteवाह !ओज पूर्ण आह्वान,सटीक सार्थक।
ReplyDeleteसुंदर सृजन।
फिर शांति
ReplyDeleteअचम्भित, विस्मित है
फिर मानवता के घर विषाद ।
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!--ब्रजेंद्रनाथ
वाह, शंखनाद करती सुंदर रचना । बहुत बधाई जयकृष्ण जी ।
ReplyDeleteनमस्ते.....
ReplyDeleteआप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की ये रचना लिंक की गयी है......
दिनांक 29/05/2022 को.......
पांच लिंकों का आनंद पर....
आप भी अवश्य पधारें....