Friday, 13 August 2021

एक गीत-बाढ़ की विभीषिका पर /पानी में डूब गए पेड़ हरसिंगार के

 


एक गीत -बाढ़ की विभीषिका पर 


डूब गए

पानी में

पेड़ हरसिंगार के।

स्वप्न गिरे

औंधे मुँह

पूजा और प्यार के ।


द्वार-द्वार

गंगा और

जमुना की लहरें हैं,

बस्ती में

नावें हैं

मदद और पहरे हैं,

कजली चुप

फीके रंग

सावनी फुहार के ।


नदियों के

पेटे में

एक नया प्रयाग है,

चूल्हों में

पानी है

बुझी हुई आग है,

मछली सा

तैर रहे

आदमी कछार के ।


जिनके 

घर-बार

हुए वो भी बंजारों से,

खतरा है

नदियों के

टूटते किनारों से,

चाँदनियों 

के चेहरे

हैं बिना सिंगार के ।

कवि-जयकृष्ण राय तुषार


चित्र साभार गूगल


12 comments:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज शनिवार (१४-०८-२०२१) को
    "जो करते कल्याण को, उनका होता मान" चर्चा अंक-४१५६ (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. हार्दिक आभार आपका।सादर नमस्कार

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  2. बाढ़ की विभीषिका पर हृदय स्पर्शी सृजन।
    बहुत सुंदर।

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    1. हार्दिक आभार आपका।सादर अभिवादन

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  3. बाढ़ की विभीषिका पर कितनी गहराई से लिखा है | पूरा दृश्य जैसे आँख के सामने तैर गया ,जो लोग बढ़ में फंसे हैं उनकी कल्पना करते ही आँख नम हो गई |

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    Replies
    1. हार्दिक आभार आपका।सादर अभिवादन

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  4. हृदय को विदीर्ण कर देने वाली कविता रची है तुषार जी आपने। आपकी लेखनी से प्रायः मन में सुंदर-सुकोमल अनुभूतियां जागृत करने वाली कविताएं प्रवाहित होती हैं। आज यथार्थ को प्रदर्शित करती आपकी इस कविता का पारायण करते समय मुझे यह अनुभव हुआ कि आपका रचना-धर्म किसी सीमा में बंधा हुआ नहीं है।

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    1. आपकी टिप्पणी में मेरी अतिशय प्रशंसा शायद मुझसे अगाध स्नेहवश हो जाती है।कवि तो निमित्त मात्र होता है लिखती तो वाग्देवी है।जिससे जो चाहे लिखवा ले ।आपके प्रति हृदय से आभार ।सादर प्रणाम

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  5. हृदय स्पर्शी सृजन

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  6. बहुत ही मार्मिक और हृदयस्पर्शी रचना!

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