चित्र साभार गूगल |
एक गीत-हरे धान के इन फूलों में
हरे धान के
इन फूलों में
चावल होंगे काले-गोरे ।
बादल-बिजली
धूप-छाँह में
हँसते हैं,बतियाते हैं ये,
चिकनी,भूरी
करइल,दोमट
सबमें गीत सुनाते हैं ये,
बच्चे उड़ते
पंख लगाकर
दूध -भात के देख कटोरे ।
कभी मूँगारी
हो जाते हैं कभी
जलप्रलय में बहते हैं,
पक जाने पर
रंग सुनहरे
लिए हमेशा ये रहते हैं,
इनकी आमद से
भर जाते कितने
कोठिला,कितने बोरे ।
मजदूरिन
होठों की लाली
इनसे ही कंगन औ बाली,
चिरई -चुनमुन
कजरी गैया
सबकी भरती इनसे थाली,
अक्षत,तिलक
यजन की वेदी
रस्म निभाते चावल कोरे ।
कवि-जयकृष्ण राय तुषार
चित्र साभार गूगल |
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में बुधवार 4 अगस्त 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आदरणीया पम्मी जी सादर अभिवादन।आपका हृदय से आभार।
Deleteबहुत सुंदर सृजन आदरनीय ।
ReplyDeleteसादर
हार्दिक आभार भाई हर्ष जी
Deleteअक्षत,तिलक
ReplyDeleteयजन की वेदी
रस्म निभाते चावल कोरे ।---बहुत ही अच्छी और महत्वपूर्ण विषय पर रचना।
हार्दिक आभार आपका भाई
Deleteबहुत सुंदर रचना।
ReplyDeleteकमाल का प्रवाह है सर।
प्रणाम
सादर।
हार्दिक आभार श्वेता जी
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका आदरणीय
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