एक सामयिक गीत
फिर बनो योगेश्वर कृष्ण
फिर बनो
योगेश्वर कृष्ण
उठो हे पार्थ वीर ।
हे सूर्य वंश के
राम
उठा कोदण्ड- तीर ।
जल रहा
शरीअत की
भठ्ठी में लोकतंत्र,
अब भारत
ढूंढे विश्व-
शान्ति का नया मन्त्र,
भर गयी
राक्षसी
गन्धों से पावन समीर।
इन महाशक्तियों
के प्रतिनिधि
अन्धे, बहरे,
ये सभी
दशानन हैं
इनके नकली चेहरे,
सब अपने
अपने स्वार्थ
के लिए हैं अधीर।
इतिहास
लिखेगा कैसे
इस युग को महान,
नरभक्षी
रक्तपिपासु
घूमते तालिबान,
रावलपिंडी
दे रही
इन्हें मुग़लई खीर ।
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (31-8-21) को "कान्हा आदर्शों की जिद हैं"'(चर्चा अंक- 4173) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
------------
कामिनी सिन्हा
हार्दिक आभार आपका
Deleteभगवान कृष्ण और श्री राम के चरित्र से प्रेरणा ही प्रेरणा मिलती है, गहन विचार,बहुत सुंदर, सामयिक तथा सारगर्भित भी,आप को जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ और बधाई।
ReplyDeleteआपके सुंदर कमेंट्स बेहतर लिखने की प्रेरणा मिलती है |हार्दिक आभार आपका
Deleteवीर रस और आव्हान से भरी रचना---जो तालिबान और रावलपिंडी तक की कथा को समेट रही है---वाह तुषार जी
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका |सादर अभिवादन |
Deleteबहुत खूब | कृष्णजन्माष्टमी की शुभकामनायें
ReplyDeleteआपका हृदय से आभार |सादर अभिवादन |
Delete