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चित्र साभार गूगल |
तमाम फूल, तितलियों में भी उदास रहा
बिछड़ने वाला ही यादों के आसपास रहा
जहाँ भी फूल थे शाखों पे खिलखिलाते रहे
हवा के साथ उड़ानों में बस कपास रहा
तमाम ग़म को छिपाए हँसी की चादर से
आज़ाद मुल्क में जैसे वो क्रीत दास रहा
जो पेड़ आज परिंदो का आशियाना है
वसंत आने के पहले वो बेलिबास रहा
किसी के आने की आहट थी चाँदनी की तरह
तमाम रात अँधेरे में भी उजास रहा
न मोर पंख न तितली,नदी, हिरण भी नहीं
ये गाँव गाँव नहीं था ये बस नख़ास रहा
हमेशा अजनबी रस्तों में काम आते रहे
शिकस्त उससे मिली जो हमारा खास रहा
जयकृष्ण राय तुषार
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चित्र साभार गूगल |
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