चित्र साभार गूगल |
एक ग़ज़ल-आख़िरी फूल हैं मौसम के
सिर्फ़ मधुमास के मौसम में ही ये खिलते हैं
आख़िरी फूल हैं मौसम के चलो मिलते हैं
जागकर देखिए जलते हैं ये औरों के लिए
ये दिए दिन के उजाले में कहाँ जलते हैं
आसमानों के कई रंग हैं सूरज हम तो
एक ही रंग में पश्चिम की दिशा ढ़लते हैं
सिद्ध जो असली ज़माने को दुआ देते हैं
कुछ तमाशाई हैं जो पानियों पे चलते हैं
जयकृष्ण राय तुषार
चित्र साभार गूगल |
सुंदर रचना
ReplyDeleteआपका हृदय से आभार आदरणीय
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (17-11-2021) को चर्चा मंच "मौसम के हैं ढंग निराले" (चर्चा अंक-4251) पर भी होगी!
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
'मयंक'
हार्दिक आभार आपका सर
Deleteबहुत सुंदर सराहनीय रचना ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका।सादर अभिवादन
Deleteवाह बहुत ही उम्दा वा बेहतरीन
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका मनीषा जी।सादर अभिवादन
Deleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका भाई मनीष जी
Delete