Monday, 15 November 2021

एक ग़ज़ल-आखिरी फूल हैं मौसम के

 

चित्र साभार गूगल


एक ग़ज़ल-आख़िरी फूल हैं मौसम के


सिर्फ़ मधुमास के मौसम में ही ये खिलते हैं

आख़िरी फूल हैं मौसम के चलो मिलते हैं


जागकर देखिए जलते हैं ये औरों के लिए

ये दिए दिन के उजाले में कहाँ जलते हैं


आसमानों के कई रंग हैं सूरज हम तो

एक ही रंग में पश्चिम की दिशा ढ़लते हैं


सिद्ध जो असली  ज़माने को दुआ देते हैं

कुछ तमाशाई हैं जो पानियों पे चलते हैं

जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल


10 comments:

  1. सुंदर रचना

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  2. आपका हृदय से आभार आदरणीय

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  3. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (17-11-2021) को चर्चा मंच        "मौसम के हैं ढंग निराले"    (चर्चा अंक-4251)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    --
     हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'   
    'मयंक'

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  4. बहुत सुंदर सराहनीय रचना ।

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    1. हार्दिक आभार आपका।सादर अभिवादन

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  5. वाह बहुत ही उम्दा वा बेहतरीन

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    1. हार्दिक आभार आपका मनीषा जी।सादर अभिवादन

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  6. Replies
    1. हार्दिक आभार आपका भाई मनीष जी

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