Wednesday, 3 November 2021

एक ग़ज़ल -चाँदनी रातों में परियों की कहानी है कहाँ

 

चित्र साभार गूगल 



एक ग़ज़ल -
चाँदनी रातों में परियों की कहानी है कहाँ
इन परिंदो के लिए अब दाना पानी है कहाँ

जाति-मज़हब के बबूलों से ये चन्दन वन भरा
ख्वाब में जो थी वो चम्पा-रातरानी है कहाँ

इस सियासत में युगों से राम को वनवास है
अब खड़ाऊँ पूजती वो राजधानी है कहाँ

बदहवासी में कोई जिन्ना की माला जप रहा
अब महल में एक भी बेगम सयानी है कहाँ

सिर्फ़ तलवारों के बलपर जिनके सिंहासन रहे
ढूँढिए इतिहास में वो राजा,रानी है कहाँ

अपनी ही आवाज़ सुनकर मुग्ध हैं सारे कुएँ
पर हक़ीक़त है कि दरिया सी रवानी है कहाँ

रहनुमा,वोटर,सियासत सब बिकाऊ है यहाँ
बस किताबों में लिखा,ईमान 'जानी' है कहाँ



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