Monday, 15 November 2021

एक गीत-मुझे अब गाँव की पगडंडियों की याद आती है

 

चित्र साभार गूगल

एक गीत -

सफ़र में

अब कोई चिड़िया

कहाँ गाना सुनाती है ।

मुझे अब

गाँव की

पगडंडियों की याद आती है।


सफ़र में

धूप हो तो

नीम की छाया में सो जाना,

बिना मौसम की

बारिश में

हरे पेड़ों को धो जाना ,

अभी भी

स्वप्न में आकर के

माँ लोरी सुनाती है ।


नदी,नाले

पहाड़ी और 

टीले याद आते हैं,

अभी भी

लौटकर बचपन में

हम कंचे सजाते हैं,

विरहिणी

गाँव में

परदेस की चिट्ठी सजाती है ।


हमारे रास्तों में

अब नहीं

कोयल न मादल है,

नहीं वो

प्यास,पनिहारिन

नहीं आँखों में काजल है,

कहाँ मोढ़े

पर भाभी

ननद के जूड़े सजाती है ।

कवि जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल


14 comments:

  1. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 16 नवम्बर 2021 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    Replies
    1. हार्दिक आभार आपका।सादर अभिवादन

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  2. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार
    (16-11-21) को " बिरसा मुंडा" (चर्चा - 4250) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
    --
    कामिनी सिन्हा

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    Replies
    1. हार्दिक आभार आपका।सादर अभिवादन

      Delete
  3. बहुत ही उम्दा रचना

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    Replies
    1. हार्दिक आभार आपका मनीषा जी

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  4. Replies
    1. हार्दिक आभार आपका अनिता जी।सादर अभिवादन

      Delete
  5. कहाँ मोढ़े पर भाभी
    ननद के जूड़े सजाती है।
    अप्रतिम!हृदय को छूते सच्चे उद्गार।

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    Replies
    1. हार्दिक आभार आपका।सादर अभिवादन

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  6. गाँव की महक बिखेरती सुंदर रचना।

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  7. वाह!बहुत ही खूबसूरत चित्रण किया है आपनें ।

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    1. हार्दिक आभार आपका शुभा जी।सादर प्रणाम

      Delete

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