एक गीत -
सफ़र में
अब कोई चिड़िया
कहाँ गाना सुनाती है ।
मुझे अब
गाँव की
पगडंडियों की याद आती है।
सफ़र में
धूप हो तो
नीम की छाया में सो जाना,
बिना मौसम की
बारिश में
हरे पेड़ों को धो जाना ,
अभी भी
स्वप्न में आकर के
माँ लोरी सुनाती है ।
नदी,नाले
पहाड़ी और
टीले याद आते हैं,
अभी भी
लौटकर बचपन में
हम कंचे सजाते हैं,
विरहिणी
गाँव में
परदेस की चिट्ठी सजाती है ।
हमारे रास्तों में
अब नहीं
कोयल न मादल है,
नहीं वो
प्यास,पनिहारिन
नहीं आँखों में काजल है,
कहाँ मोढ़े
पर भाभी
ननद के जूड़े सजाती है ।
कवि जयकृष्ण राय तुषार
चित्र साभार गूगल |
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 16 नवम्बर 2021 को साझा की गयी है....
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
हार्दिक आभार आपका।सादर अभिवादन
Deleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार
(16-11-21) को " बिरसा मुंडा" (चर्चा - 4250) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
--
कामिनी सिन्हा
हार्दिक आभार आपका।सादर अभिवादन
Deleteबहुत ही उम्दा रचना
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका मनीषा जी
Deleteमधुर सृजन
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका अनिता जी।सादर अभिवादन
Deleteकहाँ मोढ़े पर भाभी
ReplyDeleteननद के जूड़े सजाती है।
अप्रतिम!हृदय को छूते सच्चे उद्गार।
हार्दिक आभार आपका।सादर अभिवादन
Deleteगाँव की महक बिखेरती सुंदर रचना।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteवाह!बहुत ही खूबसूरत चित्रण किया है आपनें ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका शुभा जी।सादर प्रणाम
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